किसी
की साँसों में ना घोलो अपनी साँसों को,
उनमें
मिलकर वो अपनी अहमियत को खो देंगी
किसी
की साँसो के संग पराई भी हो जाएँ,
तो
दुखेगा मन कि साँसें भी मेरी अपनी नहीं.
किसी
की साँसों में उलझी हैं तेरी साँसें क्यों ?
किसी की राह सदा तकती तेरी निगाहें क्यों ?
उखड़ेगी उसकी साँस तो क्या लौटेगी तेरी साँस,
न जाने लिए बैठी है क्या तू मन में आस.
खुद अपने ही आँसू न रोया करो,
दूसरों को न आँसू रुलाया करो,
बाँट सकते हो आँसू किसी के भी तुम,
पर किसी को न आँसू बॉँटा करो.
बेवजह आँसुओं को ना बहाया करो,
कुछ खुशी के लिए भी बचाया करो,
अब अकारण ही रोना करो बंद तुम,
अब अकारण ही रोना करो बंद तुम,
रोकर सुखा दोगी अश्क स्वच्छंद तुम,
भावनाएँ जो बहती हैं आँसुओं के संग,
रूठ जाएँगी आँसू को जो होगी तंग,
भावनाओं से तुम यूं न खेला करो,
भावनाओं से तुम यूं न खेला करो,
खुद ही अपने से क्यों तुम झमेला करो.
न बँट पाएँगे ना ही झर पाएँगे,
सुख दुख भी मन में सिमट जाएँगे
कितना सँभालोगी सुख दुख का ये बोझ तुम,
इक दिन तुमको लेकर ये ढल जाएगी,
इसलिए अभी से करो यत्न तुम,
आँसुओं को बचाओ ना करो खत्म तुम,
बीता जो जीवन रीता गया ,
पर बचे को तो अब मत करो भस्म तुम.
....
जी नमस्ते , आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं......
सादर
रेणु
वाह!बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंवाह!! अदभुत सृजन ,रेणु जी के वजह से आज इसे पढ़ने का सौभाग्य मिला ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबेहद लाज़वाब रचना।
जवाब देंहटाएंभावनाओं से तुम यूं न खेला करो,
जवाब देंहटाएंखुद ही अपने से क्यों तुम झमेला करो
बहुत अच्छी सीख। सीधे सादे अंदाज की रचना जिसके गहरे अर्थ भावुक कर गए।
न बँट पाएँगे ना ही झर पाएँगे,
जवाब देंहटाएंसुख दुख भी मन में सिमट जाएँगे
कितना सँभालोगी सुख दुख का ये बोझ तुम,
इक दिन तुमको लेकर ये ढल जाएगी,
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब अद्भुत ....।