जिंदगी का सफर
आलीशान तो नहीं , पर था शानदार,
वो छोटा सा मकान,
वो छोटा सा मकान,
उसमें खिड़कियाँ भी थे,
दरवाजे भी थे और रोशनदान भी,
पर कभी बंद नहीं होते थे.
चौबीस घंटे उनमें से जिंदगी गुजरती
रहती थी.
किसी भी शाम देख लो जिंदगी का
बेलेंस,
सुबह से ज्यादा ही रहता था.
रोज होता था इजाफा,
आती ज्यादा थी और जाती कम,
खर्च करते करते थक जाते थे पर कम
होती ही नहीं थी.
वक्त बदलता गया, आदतें बदलती गईं,
जिंदगी ने नए करवट लिए,
कभी कभी अंधड़ तूफानों में ,
तो कभी धारदार बारिशों में दरवाजे बंद होने लगे,
शायद जिंदगी को भी कई बार बंद
दरवाजों से लौटना पड़ा हो.
फिर भी हर शाम आती जाती जिंदगी
बराबर ही रहती थी.
जिंदगी का खाता न बढ़ता न घटता.
जिंदगी चलती रही उसी मकान में,
हर दिन का बेलेंस बराबर ही रहता,
समय के साथ साथ जीवन करवटें बदलती
रही,
मौसम भी बदला, जीवन में अंधड़
तूफान बढ़े,
दरवाजों के साथ साथ अब खिड़कियाँ
भी बंद होने लगे,
शायद अब जिंदगी को ज्यादा बार बंद
दरवाजों से लौटना पड़ रहा होगा,
अब जिंदगी के खाते में आवक कम और
जावक बढ़ने लगी,
बेलेंस घट रहा है, आए दिन के अँधड़
तूफान,
दरवाजे बंद होकर खोले भी नहीं जाते,
कि इतने में दूसरा आ धमकता है,
दरवाजे बंद ही रह जाते हैं.
रोशनदान तो अब हमेशा के लिए बंद ही
हो गए,
अब जिंदगी आती भी होगी तो सदा ही
लौट जाती होगी,
बंद दरवाजों को देखकर, घर में जिंदगी
का आना अब बंद हो गया है
स्वाभाविक ही है, समय के साथ
जिंदगी का हर पहलू बदलता है,
जो बढ़ेगा वह घटेगा ही, शिखर पर
चढ़ने वाला नीचे तो उतरेगा ना !
जिदगी का यह घटता बेलेंस कभी तो
धरती पर आएगा,
कभी तो जीरो होगा, बस उसी का
इंतजार है,
इसी मकान में जिंदगी को बेरोकटोक
आते हुए भी देखा है,
और जाते देखा है, अब बंद दरवाजों
से लौटते हुए भी देखा जा रहा है.
कभी तो थमेगी
पर थमते हुए देखना संभव नहीं है
पर कभी तो थमेगी, जो हम न सही लोग
तो देखेंगे.
.....
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