मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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रविवार, 20 मई 2018

कली से फूल

कली से फूल
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फूल ने कली से कहा,
किस बात की जल्दी है,
क्यों खिलने को आतुर हो ?
अब तो मधुकर है डोल रहा,
मधु पाने को रस घोल रहा.

जिस दिन तुम खिलकर फूल बनो,
वह मधु सेवन करने आएगा
यह नित दिन ऐसे ही होगा
वह मधु सेवन को आएगा
और सेवन करके जाएगा.

सरकारें कानून बनाती हैं -

"तुम जब चाहे मधु बरसाओ,
जिस पर चाहे मधु बरसाओ,     
जब तक चाहो तरसाओ, 
जिसको चाहो तरसाओ."
कानून हैं कागज के टुकड़े,
सब फाईलों में दब जाती हैं
लाचार, नहीं कुछ कर पाओगी.
मसली सी खुद को पाओगी

जग जैसे का वैसे चलता है,
लाठी का जोर मचलता है
तुम भी कुछ ना कर पाओगी,
मजबूरन मसली जाओगी,

इन भौंरों का विश्वास न कर,
मधुकर पाने की आस न कर,
ये खुद की खातिर आएँगे,
मतलब साधे, उड़ जाएँगे,
तुम विरहिनी सी पछताओगी,
कुछ समय बाद झर जाओगी.

अच्छी हो कली, रहो कली तुम,
फिरने दो अलि को भले गुमसुम,
धीरे धीरे ही खिलना तुम,
अपनी मर्जी से खिलना तुम.
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4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 18 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. इन भौंरों का विश्वास न कर,
    मधुकर पाने की आस न कर,
    ये खुद की खातिर आएँगे,
    मतलब साधे, उड़ जाएँगे,
    तुम विरहिनी सी पछताओगी,
    कुछ समय बाद झर जाओगी.
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब रचना...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

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