डिजिटल इंडिया – मेरा अनुभव.
उस दिन मेरे मोबाईल पर फ्लेश आया. यदि आप जिओ का सिम घर बैठे पाना चाहते
हैं तो यहाँ क्लिक करें. मैंने क्लिक कर दिया. मुझे अपना नाम पता, आधार नंबर देने
को कहा गया. मैंने दे दिया. फिर मुझसे पूछा गया कि आप जिओ सिम कब और कहाँ चाहते हैं.
पता और समय देने पर बताया गया कि उस वक्त दिए हुए स्थान पर, मैं अपने आधार कार्ड
के साथ मौजूद रहूं.
समय से आधे घंटे पूर्व फोन आया. फोन करने वाले ने बताया कि वह जिओ से बात कर रहा है और
मुझे सिम देना चाहता है. मैंने बताया कि मेरे पास आधार कार्ड है, पर मैं अपने पते पर
नहीं हूँ. हाँ पास में ही हूँ. उसने मेरा पता माँगा और 20 मिनट में उस पते पर
पहुँच गया.
उसने मेरा आधारकार्ड माँगा नंबर नोट किया, उसका फोटो लिया और एक
फिंगरप्रिंट लिया, जिससे मेरे फोन पर एक ओटीपी नंबर आया. उसने उसे कहीं भरा और
हस्ताक्षर करवा कर सिम कार्ड देकर चला गया. मोबाईल पर मेसेज आया कि आपका आधार नंबर
वेरिफाई हो गया है.
पूरी कार्रवाई में ज्यादा से ज्यादा कोई कहिए आधा घंटा लगा होगा.
.....
कुछ दिन बाद मेरे एक दोस्त का फोन आया मुंबई से और उन्होंने बताया कि “जीवन प्रमाण” के एवज में उनको तीन महीने से पेंशन नहीं मिल रही है. तब मुझे लगा कि
मुझे खुद का भी देख लेना चाहिए. जाँच में पता चला कि मई 17 के बाद की पेंशन राशि
आई ही नहीं. हालाँकि राशि कोई दो हजार रुपए प्रतिमाह है, पर वह भी नहीं आई.
तब जाग आई. बैंक से बात किया तो वहाँ से जवाब मिला सर आपका लाईफ
सर्टिफिकेट नहीं भेजा होगा. मैंने उन्हें याद दिलाया कि भेजा था , आपसे बात भी हुई
थी. आपने आधार की कापी माँगी थी, वह भी भेजा था. तब बोले ओह आपका तो किसी
राजपत्रित अधिकारी के हस्ताक्षर से आया था ना. मुझे लगा मामला अब सुलझ गया, लेकिन नहीं.
मुझे बताया गया कि मई 2017 के बाद डिजिटल लाईफ सर्टिफिकेट ही मान्य होंगे. ये है
डिजिटल इंडिया का पहला स्वाद. न कोई मेल , न कोई संदेश, न कोई पत्र - बस पेंशन बंद
करके बैठ गए. जिसको तकलीफ होगी हाथ पैर मारेगा.
उनके एक ग्लोबल कमाँड से सारे पेंशनरों को मेल चला जाता कि मई से पहले
पहले सबको फिर से डिजिटल सर्टिफिकेट देना है या फिर उसे अगले सत्र से लागू करते.
इस डिजिटाइजेशन का क्या फायदा ? पर सरकार है हक है करो परेशान!!!
बूढ़े
हैं तो क्या हुआ? जरूरत है तो दौड़ेंगे.
चलें आगे बढ़ें. बैंक वालों से विनती करके मैंने पी एफ कार्यालय के नंबर
लिए. मेरी एक अलग मुसीबत भी यह है कि मैं रहता हैदराबाद हूँ, पर मेरा पेँशन खाता
छत्तीसगढ़, कोरबा में है. मुझे बिलासपुर और रायपुर कार्यालय के नंबर मिले. रायपुर
में किसी ने फोन नहीं उठाया, पर बिलासपुर से जवाब मिला. उनका कहना था कि मुझे
रायपुर या बिलासपुर जाकर वहाँ व्यक्तिगत तौर पर फिंगरप्रिंट देकर जीवन प्रमाण देना
होगा. मैंने सोचा, 2000 रु मासिक के लिए 6000 खर्च कर रायपुर/ बिलासपुर जाऊँ.
मैंने बात आगे बढ़ाया. जनाब इस डिजिटल इंडिया
के जमाने में भी क्या वहाँ जाना ही पड़ेगा? मैं
हैदराबाद में रहता हूँ, यहाँ भी तो कोई ईपीएफओ का दफ्तर होगा. तब फिर उन्होंने सलाह
दिया कि आप अपना पेशन पेमेंट अथॉरिटी, आधारकार्ड और पेंशन वाले बैंक का पास बुक (प्रथम
पृष्ठ सहित) लेकर हैदराबाद के क्षेत्रीय कार्यालय में जाएं तो वहां से यह काम हो
सकता है.
चलिए मैं ईपीएफओ के क्षेत्रीय कार्यालय
पहुँचा. एक कमरे में दो लिपिक बैठे हैं और वे ही लोगों का जीवन प्रमाण तय कर रहे
हैं. कमरे में कोई 100-150 लोग बैठे होंगे. 52 नंबर का टोकन चल रहा था. मेरा टोकन
नंबर 95 था. बात साफ थी कि 3 घंटे पहले तो नंबर आने का कोई मतलब ही नहीं इस बीच
लंच ब्रेक भी होना था. मैं 11 बजे पहुंचा था और मेरा नंबर 3 बजे आया. खाना तो गया.
तब तक कैंटीन भी सूख गई थी.
वहाँ मैंने पता किया कि पूरे
हैदराबाद-सिकंदराबाद जुड़वाँ शहर में क्या और कोई जगह है जहाँ यह काम हो सकता है ? तो जवाब मिला नहीं, यहीं आना होगा. पूरे शहर
व आस पास के इलाकों से बुजुर्ग जिनकी कमर पूरे धरातल तक झुक गई है, वहाँ आकर बैठे
हैं. किसी को उम्र का लिहाज भी नहीं. 61 साल का व्यक्ति और 90 साल की बूढ़ी दोनों
एक ही कतार में हैं. कोई रियायत या सुनवाई नहीं.
उस पर वहाँ जो सुनने मिला वह तो और भी हैरान
करने वाली बात थी. लोग स्टेट बैंक एवं अन्य बैंकों से जीवन प्रमाणपत्र लेकर आए थे.
उनका कहना था कि वे दो बार जीवन प्रमाणन कराकर जा चुके हैं, पर पेंशन न हीं आई
इसलिए फिर आए हैं.
70-75 साल की आयु के इन लोगों (वहाँ 85 साल
तक के लोग थे कमर झुकी हुई) की ऐसी हालत पर तरस आता है.
.....
अब आईए मुद्दे पर.
जब इंडिया डिजिटल नहीं हुआ था तब जो लोग अपने
पेंशन वाले बैंक ब्राँच में जा सकते थे, वे वहाँ जाकर जीवन प्रामाण बैंक अधिकारी
को दे आते थे. जो दूसरी जगह होते थे वे किसी राजपत्रित अधिकारी या बैंक मेनेजर से
अपने हस्ताक्षर प्रमाणित कर उस प्रमाणपत्र को पेंशन वाली बैंक शाखा में भेजते थे
और पेंशन लग जाती थी.
अब इंडिया डिजिटल हो गया है. तो कोई
प्रमाणपत्र मान्य नहीं है. उम्र हालत कुछ भी हो जीवलन प्रमाणन के लिए ईपीएफओ
कार्यालय जाकर ही फिंगरप्रिंट देना है. जो हैदराबाद जैसे वृहत जुड़वाँ शहर में भी
एक ही है. जिसकी हालत का ऊपर जिक्र है.
जनता समझे कि इस तरह कि डिजिटल इंडिया से
किसका भला हुआ.
जो लोग इससे संबंधित हैं उन्हें चाहिए कि
इसका जायजा लें और कम से कम पुरानी सुविधा को तब तक बहाल रखें जब तक नई डिजिटल
इंडिया की प्रणाली खुदपूर्णतः प्रमाणित नहीं हो जाती.
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जिओ वाला सिम देने के लिए आधे घँटे में घर
आकर आधार से प्रमाणन कर लेता है, पर सरकार के बाशिंदे पेंशन के लिए इस तरह परेशान
हो रहे हैं या कहूं किए जा रहे हैं.
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भला हो उस चंद्रबाबू नायडू का जिसने संयुक्त
आँध्र में डिजिटीजेशन किया. हाईटेक सिटी दी. जगह जगह ई सेवा , मी सेवा (आपकी सेवा)
केंद्र खुलवाए जहाँ से आधार कार्ड, राशन कार्ड, पेन कार्ड बनवाए जा सकते हैं,
बदलाव करवाए जा सकते हैं . बिजली पानी के बिल हाउसटेक्स भर सकते हैं. जाति
प्रमाणपत्र पा सकते हैं. इस सरकार को चाहिए कि कम से कम यहाँ पेंशन के लिए जीवन
प्रमाण को भी इस संस्था से जोड़ दे ताकि लोग अपने नजदीकी कार्यालय में जाकर जीवन
प्रमाण दे सकें.
अच्छा हो अन्य राज्यों की सरकारें इसकी
अनुकृति कर लें ताकि बुजुर्गों को उचित सुविधा मिल सके.
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यह टिप्पणी किसी "अनजान" ने मेरे इसी लेख पर "हिंदी कुंज" पटल पर डाला है। मु झे बहुत पसंद आया। उनसे मैंने विनती किया था कि वे इसे मेरे ब्लॉग पर भी डालें, किंतु शायद उनको यह गवारा नहीं हुआ। इतने लंबे इंतजार को बाद आज मैं इसे हिंदी में यहाँ डाल रहा हूँ।
जवाब देंहटाएं"ड्जिटाइजेशन सिर्फ अपने फायदे के लिए हो रहा है।जनता जाए भाड़ में। ऐसी मन लुभाने वाली तरकीबों का फायदा पूँजीवाद वर्ग ही उठा रहा है। डिजिटाइजेशन खराब नहीं है, पर उसका उददेश्य जनता को परेशान करने के लिए न होकर, उसकी मदद के लिए होना चाहिए। एक तरफ नौजवान बेरोजगार घूम रहे हैं, वृद्ध पेंशन के लिए परेशान हैं, शिक्षा की कमी है, मजदूरों को सही मूल्य नहीं मिल रहा है और दूसरी तरफ भारत डिजिटाल हो रहा है। करो डिजिटल इंडिया, पर मूलभूत समस्याएँ तो दूर करो। ऐसी डिजिटाइजेशन का क्या फायदा जब उससे परेशानी और भी बढ़ रही है।"