आधार.
आज जहाँ भी जाइए ... पेनकार्ड, मेबाईल,
पासपोर्ट, इंश्यूरेंस पालिसी, डी मेट एकाउंट, ड्राईविंग लाईसेंस, एल पी जी, रेल्वे
टिकट, बैंक एकाऊंट, गाड़ी, जेवर, प्लाट, मकान की खरीददारी - किसी भी बात पर आपको
आधार कार्ड का नंबर जोड़ना जरूरी सा हो गया है. बच्चों की छात्रवृत्ति, हर तरह की पेंशन,
बारहवीं की परीक्षा, यू पी एस सी की परीक्षाएं, सब जगह आधार अनिवार्य कर दिया गया
है. ऐसा ही रहा तो कुछ दिन में आपको बस पास, लोकल ट्रेन का पास, सुबह का दूध - कुछ भी नहीं मिलेगा - यदि आधार नहीं है तो. गरीबों को राशन पाने के लिए
आधार नंबर चाहिए, किसानों को बीज व खाद पाने के लिए आधार चाहिए.
जब सालों पहले सरकार ने इसे शुरु किया था, तब
आज की सरकार विपक्ष में थी और अपने आदतानुसार विरोध ही करती रही. वही सरकार में आ गई
तो इसे ही हर तरफ से जरूरी कर रही है.
शायद सरकार में आने के बाद इस को जरूरी करने के फायदे नजर आने लगे हैं या ऐसा भी
हो सकता है कि सरकार में रहने वालों को इसका फायदा होगा, इसीलिए सरकार में आने के
बाद ही इनका रवैया बदला.
अब मान लीजिए किसी के आधार को रोक दिया गया.
कैसे इसकी चर्चा फिर करेंगे. आपका बैंक खाता बंद, राशनपानी बंद, पासपोर्ट नहीं
चलेगा, कुकिंग गैस नहीं मिलेगी इत्यादि सब बंद - कारण आपके आधार की पुष्टि नहीं हो पा रही है.
अमरीका में रिटायरमेंट के दिन एक कर्मचारी ने
राष्ट्रपति ट्रंप का ट्विटर खाता बंद कर दिया. वैसे ही कोई किसी का आधार वेरिफिकेशन
से खेले तो. मान लीजिए सरकार के बाशिंदे ही चाहें, आपको परेशान करना तो.
यह ऐसा ही किस्सा हुआ कि सारी रकम एक जेब में
है और वह कट गई... भूखों मरिए.
बरसों पहले जब नंदन नीलेकनी ने आधार की नींव
रखी और तब ऐलान किया था कि इससे खास फायदे ये हैं कि सारे कार्ड एकजुट हो जाएंगे
और केवल आधार कार्ड ही सबके काम आ जाएगा. एक नंबर आधार ... सब सूचनाओं का गढ़
होगा. कितनी खुशी हुई थी कि पचासों के बदले एक ही कार्ड – पेनकार्ड, ड्राईविंग
लाईसेंस, वोटर कार्ड कुछ भी साथ रखने की
जरूरत नहीं पडेगी.
यही सोचकर मौका पाते ही सबसे पहले अगस्त 2011
को मैंने आधार के लिए आयरिस प्रिंट, फिंगरप्रिंट के साथ साथ सारी आवश्यक सूचनाएं व
कागजात आधार वालों को दे दिए.
एक खुशी थी कि हमारे शहर में के कुछ एक पहले
पहले आधार पाने वालों में मेरा भी नाम होगा.
फिर क्या दफ्तर, क्लब और समाज में आधार का
मैं विज्ञापन ही करने लगा था. फार्म ला लाकर सबको बाँटने लगा. बहुतों ने तो इसमें
की रुचि भी नहीं दिखाई. बहुत समझाने की कोशिश की कि बाद में भीड़ बढ़ जाएगी, अभी
करवा लीजिए. पर सुनने को कम ही लोग तैयार थे.
अब समस्याएं शुरु हुईं उनकी जिन्होंने आधार
के लिए पंजीयन करा लिया. कुछ के कार्ड नहीं आए, कुछ में लिंग भेद आ गया तो किसी
में पिता की जगह पति का या पुत्र का नाम आ गया. पता और नाम के हिज्जों में गड़बड़ी
तो आम बात थी. कई में तो जन्मतारीख भी बदल गई. इनको सुधरवाना एक बड़ी मुश्किल थी.
जिनको कार्ड नहीं मिला उनसे कहा गया नेट पर
खोजिए, तरीके बताए गए पर बहुत समय तक तो नेट पर मिल ही नहीं पाया. मुझे तो कार्ड
दो साल बाद 2013 में मिला . एक नेट सर्विस प्रोवाइडर की सहायता से.
सही में नेट से पता चला कि किसी अन्जान कारण से मेरा कार्ड अंबेडकर यूनिवर्सिटी
आगरा पहुँच गया. जब आगरा के दोस्तों से बात किया तो एक ही जवाब मिला कि वह तो नहीं
मिलेगा एक नया बनवा लो. पर आधार वालों ने तो नया बनाने से मना ही कर दिया और यह
सुझाव दिया कि नेट से आप प्रिंट ले लें और लेमिनेट करवा लें जो मान्य होगा.
अंततः वैसा ही करना पड़ा.
बहुतों से तो कहा गया कि अप्रेल 2013 के पहले
बने कार्ड यदि नहीं पहुँचे हों, तो नेट से जाँच ले. यदि बन गए तो नेट, से प्रिंट
ले लें और नहीं बने तो फिर से पंजीयन करा लें.
ऐसी हुईं मुसीबतें आधारके साथ.
इतना ही नहीं , जब हर नागरिक का आधार कार्ड
बनना था तो मुसीबत डाकियों की भी हुई. परेशान होकर कई डाकियों ने इन्हें मंजिल से
पहले ही निपटाना चाहा. समय समय पर नाले में, कूड़े के ढ़ेरों मे बेहिसाब आधार
कार्ड मिले लोगों को, पर वे भी सही मंजिल देख नहीं पाए.
धीरे धीरे सरकार ने शिकंजा कसना शुरु किया कि
आधार जरूरी है और सब इसे बनवाएं.
उस समय आज का सरकारी दल जो विपक्ष में था, आधार
का हर तरह से विरोध कर रहा था. पता नहीं इस पर क्या क्या कहा गया. सरकारी पैसों का
नाजायज इस्तेमाल शायद सबसे छोटी तोहमत थी. निजता पर हमला और संविधान के मूल
अधिकारों का हनन शायद प्रमुख थे.
मई 2014 में जब यह दल सरकार में आया तो शायद
इन लोगों ने आधार परियोजना को पूरा पढ़ा और समझा. तब इनके भेजे में बात आई होगी कि
पुरानी सरकार आधार पर जोर किसलिए दे रही थी. अब इन लोगों ने पलटी मारा और आधार पर
जोर देना शुरू किया. धीरे धीरे करते हुए आधार मोबाइल सिम कार्ड, कुकिंग गैस, बैंक
खाते, इंश्यूरेंस पालिसी, पेन कार्ड, पेंशन, छात्रवृत्ति, किसानों के बीज, गाड़ी, जमीन
- मकान की खरीद फरोक्त, बैंक को लोन, 50 हजार से ज्यादा पैसे जमा करने निकालने और
न जाने कहाँ कहाँ जरूरी कर दिया है. पर
निजता का और मूल अधिकारों का हनन अब नजर नहीं आता
उधर कईयों ने तो न्यायलयों में वाद –
याचिकाएं दायर की हैं. न्यायालयों ने भी कई बार कहा है कि आधार जरूरी नहीं है पर
सरकार अब न्यायालयों से भी ताकतवर हो गई है. अब सरकार पर न्यायालयों के आदेशों का
कम ही असर होता है.
मेरी राय में - यदि ईमानदारी बरती जाए तो आधार जैसा सूचना
केंद्र बहुत ही काम का है. पर ईमानदारी रहे तो . अन्यथा बेइमान लोग आधार से खेलकर
लोगों को तबाह कर सकते हैं.
अभी कुछ समय पहले सेवानिवृत्त होते हुए एक कर्मचारी
ने अमेरिका के अध्यक्ष ट्रंप का (शायद ट्विटर) ही खाता बंद करके चला गया. यदि अमेरिका में इस तरह
की घटना हो सकती है, तो भारत की सोचिए.
हमारे देश में लोग डिजाइन व प्लानिंग में
विश्वस्तर के या उससे बेहतर हैं किंतु क्रियान्वयन के मामले में हम बदतर से भी
बदतर हैं. बेईमानी, ना-इंसाफी और घूसखोरी
हममें कूट कूट कर भरी है. इस लिए इस सूचना केंद्र का दुरुपयोग निश्चित है. बस बात
समय की है. जिस देश में सरकार, योजना आयोग, मिलिटरी के कंप्यूटरों पर अनेक देशों
के लोगों द्वारा हमला हो सकता है, सेंध मारा जा सकता है उस देश में आधार केंद्र पर
सेंध मारना कितना नामुमकिन है. यदि एक बार ये सेंध मारा गया तो समझें सबकी सब
सूचनाएं सार्वजनिक हो गईं और इनका नाजायज इस्तेमाल हो सकता है. इसके अलावा बेईमानी
के लिए सूचना सार्वजनिक करना भी असंभव नहीं कहा जा सकता.
यदि सरकार ऐसी सुरक्षा कर भी लेती है तो भी सरकार
के हाथ में तो ऐसी सुविधा है कि जब चाहे जिसका चाहे आधार सूचना रोक दे. यदि ऐसा
हुआ तो उस नागरिक का तो जीना दूभर हो जाएगा. सब कुछ एक साथ बंद हो जाएगी. ये तो
इंदिरागाँधी के आपालकाल में भी नहीं हुआ था. एक वीडियो सार्वजनिक पटल पर चल रहा
है. मैं यहाँ दे रहा हूँ देखिए कि कैसी मुसीबत हो सकती है जब आधार की सूचनाएं
लोगों को मिल जाती हैं.
पता नहीं मूल किसका है मेरा आभार मूल पोस्ट
धारक को. संभव हुआ तो आप भी देखिए.
आज भी आधार का मूल मामला उच्चतम न्यायालय में
चल रहा है. मुद्दा है कि आधार निजता का हनन है या नहीं. न्यायालय पहले ही
कह चुका है कि निजता का अधिकार संविधान के मूल अधिकारों में समाया है. यदि आधार को
निजता का हनन माना गया तो इसका सभी योजनाओं से जोड़ना गलत हो जाएगा. पर जिनके आधार
जहाँ तहाँ जुड़ गए उनका क्या होगा ?
अभी तक न्यायालय ने आधार को किसी भी परियोजना
से जोड़ने संबंधी किसी भी विषय पर रोक नहीं लगाई है. इससे साफ नजर आता है कि जवाब
जोड़ने के पक्ष में ही होगा अन्यथा सरकार को “स्टेटस को” रखने को कहा जाता, पर ऐसा नहीं हुआ.
सरकार ने इस मामले में न्यायालय की भी नहीं मानी
है. कई बार तो सरकार को न्यायालय ने रोका कि जनता को मजबूर न करें कि आधार जोड़ें,
न ही किसी सुविधा को पाने में रोक लगाएँ. किंतु सरकार कार्यक्रम में सीधे आगे बढ़
रही है और जनता को धमका तक रही है कि यदि आधार नहीं जोड़ा तो मोबाईल बंद, पेंशन
बंद, छात्रवृत्ति बंद, बैंक खाता जाम, हवाई टिकट बंद और कई सारे बंधन. और तो और
लोग यू पी एस सी और बारहवीं का परीक्षा से वंचित किए जा रहे हैं, आधार नहीं होने
पर. यह किसी भी कीमत पर आतंकवाद से कम है क्या ? जमीन , मकान , गाड़ी का पंजीयन नहीं हो रहा
है. ड्राईविंग लाईसेंस नहीं बन रहा है.
आधार होने पर एक को महीने में 9 रेलवे टिकट मिलते हैं वरना केवल 6.
अब भी न्यायालय ने सरकार से कहा है कि जब तक
फैसला नहीं आ जाता आधार को जोड़ने की अंतिम तारीख बचाकर रखें, पर सरकार ने तो सीधे
ही मना कर दिया. न्यायालय ने फिर लगातार सुनवाई करने का निर्णय लिया था. अब हार कर
न्यायलय ने ही नई तारीख 31 मार्च का ऐलान किया है.
सरकार न्यायलय पर नाजायज दबाव बना रही है.
देखिए न्यायालय कौन सा रुख अपनाता है.
उधर बंगाल की मुख्यमंत्री ने न्यायालय में
दावा किया कि सरकार का आधार से जोडने की जबरदस्ती नाजायज है. न्यायालय ने भी कह
दिया कि आप व्यक्तिगत रूप से वाद दायर कर सकती हैं, मुख्यमंत्री के रूप में नहीं.
पर मुख्यमंत्री को भी गलत ही लगा ना.
हाल ही में एक अंग्रेजी अखबार में पढ़ने को
मिला निम्न अंश देखिए :
Quote –
For BREXIT a statement came :
“The undefined being negotiated by
the unprepared in order to get unspecified for the uninformed.”
If the ethics are
not followed the it can be well used to define
Aadhaar
Only applications
of the schemes in future will confirm us IF
- in long-run it is
A Mad disastrous
idea
or the Best idea India ever had.
ON DATE NONE KNOWS
CLEARLY.
Unquote.
लेकिन जीवन के अनुभवों से निष्कर्ष निकाला जा
सकता है कि हमारे देश में डिजाइन और प्लानिंग तो दुनियाँ में बेहतर के समकक्ष या उससे
भी बेहतर होता है पर उसका क्रियान्वयन बदतर से भी बदतर है. पैसों के लिए कोई भी इन
सूचनाओं को बाजारू कर सकता है. बस एक सौदा मतलब सारा धराशायी. कितनों की आफत आएगी
भगवान ही जाने. सरकार चाहे तो किसी को भी सूचना मुहैया करा सकती है. गूगल जिस तरह
आपके फोन पर किए हर गतिविधि पर ध्यान देता है और उसकी डाटा का हैक होना जिस तरह
आपको परेशान कर सकता है उसी तरह यह भी है, पर यह अत्यधिक निजी सूचना है इसलिए
नुकसान असीमित होगा.
आई टी के प्रस्तुत हालात और माहौल में इतनी
सुरक्षा मुमकिन नहीं लगती है. पता नहीं जो भगवान के दायरे में भी नहीं है उसकी
गारंटी सरकार कैसे ले सकती है.
आधार संस्थान ने दो चार दिनों के भीतर ही
एअरटेल मोबाईल व एअरटेल बैंक का लाइसेंस को निलंबित किया है. वह इसलिए कि उन्होंने
बिना सूचना के आधार सूचनाओं का गलत बात के लिए प्रयोग किया है.
आधार के प्रबंधन करने वालों की मानसिकता कितनी न्यायोचित है इस का निर्णय करने के लिए आप निम्न विषयों पर विचार करें -
1. उच्च व मध्यम वर्गीय परिवारों को सब्सिडी से वंचित कर दिया गया है पर साँसदों और विधायकों की सब्सिडी अभी भी य़थावत् कायम है.
2. आधार को दुनियाँ भर के परियोजनाओं व सुविधाओं से जोड़ना जरूरी कर दिया है और बिना उसके सुविधा को स्थगित करने तक की मुहिम चलाई जा रही है. पर आधार को राजनीतिक दलों को अनुदान याकहें चंदा से नहीं जोड़ा जा रहा है.
3. वोटर कार्ड और वोटरॉलिस्ट अभी भी आधार के दायरे से बाहर है. शायद इसे आधार से जोड़ने पर फर्जी
वोट और वोटिंग बंद हो जाएगी.
कल ही वाट्सप पर एक मजाक आया --
सोमालिया में चुनाव में वोटिंग के लिये इंडिया से evm मशीन मंगा ली।
वोट गिनती में बीजेपी की सब से ज्यादा वोट निकली
ये तो मजाक था पर रत्ती भर भी ऐसा रुझान हो तो हमारी सूचनाओं का आधार कितना सुरक्षित है सोचिए
…..