हिंदी कुंज पर मेरे
लेख “ हिंदी
दशा और दिशा ” पर - समीर
पिलानी - ने टिप्पणी दी.- “ Hey I want some help from u people. I hv an project on Hindi related 2 this. Topic is “हम हिंदी क्यों पढ़ते हैं “. Pl give info 4 this.”
प्रोजेक्ट का
विषय व टिप्पणी की भाषा देखकर लगा कि समीर पिलानी अभी स्कूल का विद्यार्थी है. सो
और भी अच्छा लगा कि कोई विद्यार्थी हिंदी जानने की आशा से नेट पर मेरा लेख देख
पाया. पढ़ा
या नहीं पता नहीं. मुझसे कुछ और जानने की इच्छा है. मेरी खुशी का ठिकाना मत
पूछिए... किसी ने कुछ जानना चाहा है. मैं तुरंत यह लिखने बैठ गया. विषय है “हम हिंदी क्यों
पढ़ते हैं”.
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“हम हिंदी क्यों पढ़ते हैं”
(15 सितंबर 2014 को हिंदी कुंज में राजभाषा हिंदी दिवस शृंखला अंतर्गत प्रकाशित)
हम हिंदी क्यों
पढ़ते हैं ? यह एक
अहम सवाल है और हर भारतीय ( या कहें हिंदुस्तानी ?) के मन में स्वभावतः उठना चाहिए.
पहली कारण यह
कि जिन लोगों की यह मातृ भाषा है, उन्हें हिंदी इसलिए सीखना चाहिए कि वह उनकी मातृ
भाषा है. मातृ भाषा को जानना जरूरी है – केवल इसलिए नहीं कि वह मातृभाषा है. बल्कि
इसलिए भी कि सारे रिश्तेदार उसी भाषा में संपर्क करते हैं. हो सकता है कि परिवार
में पत्राचार आदि भी इसी भाषा में किए जाते हैं.
दूसरा कारण यदि
आप हिंदी भाषी प्रदेश में रहते हैं तो आप के चारों ओर हिंदी का माहौल होता है. निश्चित
ही वहां की संपर्क भाषा भी हिंदी होगी. इसलिए हिंदी भाषी इलाके में रहने वाले को
हिंदी सीखनी पड़ती है. अन्यथा वह आस - पास के लोगों से ( दोस्तों से भी) अलग-थलग
रह जाएगा. कई सरकारी व इलाके के संस्थानों की सूचनाएं व जानकारी हिंदी में ही दी
जाती होंगी – आप उन्हे समझने जानने से वंचित रह जाओगे.
तीसरा कारण यह
कि हिंदी का साहित्य बहुत ही धनी है. हिंदी जानने से आप हिंदी साहित्य पढ़ पाओगे
और उसमें समाहित जानकारी हासिल कर पाओगे. हाँ इसके लिए आपका साहित्य में रुचि होना
आवश्यक है. यदि आप साहित्य में रुचि नहीं रखते तो यह कारण आपके लिए हिंदी सीखने को
प्रेरित नहीं करता. साहित्य का मतलब हिंदी संबंधी लेख ही नहीं वरना कविता, कहानी
नाटक, उपन्यास, कार्टून , सिनेमा, गाने
इत्यादि भी है.
चौथी बात उत्तर
भारत में पूरी तरह व दक्षिण भारत में शायद 60-65 प्रतिशत शहरी लोग हिंदी जानते हैं
इसलिए हिंदी जानने से आपको पर्यटन के दौरान संवाद करने में आसानी होगी. अब सवाल
उठता है कि हर कोई पर्यटन क्यों करे ? हाँ बात तो सही है परंतु पर्यटन के भी कई कारण
होते हैं. जैसे बिजिनेस में सामान की बिक्री के लिए, जगह से परिचित होने के लिए व
इतिहास के स्मारकों के दर्शन के लिए , प्रकृति का आनंद लेने के लिए, उच्च-उच्चतर
पढ़ाई के लिए, नौकरी की खोज में और अन्येतर कारणों से लोगो को सफर में दूसरी जगहों
मे जाना पड़ता है. तब संपर्क भाषा की जरूरत पड़ती है. इस विधा में हिंदी एक बहुत
ही सहायक भाषा है,. खास तौर पर उत्तर भारत में हिंदी के बिना गुजारा करना भारी पड़
सकता है.
आगे बढ़ते हैं –
पाँचवाँ कारण - इन सबके अलावा एक और प्रमुख कारण है कि हिंदी हमारे देश की राज
भाष। है ( Official Language
of our Nation ऑफिशियल लेंग्वेज ऑफ अवर नेशन). इसलिए भी हम हिंदी सीखते
हैं. देश के प्रति अभिमान जताने करने का यह एक प्रशस्त तरीका लगता है. यह मेरी
विचार है.
अब कुछ और
बातें – अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आप निहारें तो जान पाएंगे कि विश्व के अक्सर देशवासी
अपनी देश की भाषा में संवाद करने में रुचि रखते हैं , अपनी देश की भाषा को महत्व
देते हैं और इसमें वे अपना गौरव समझते हैं. उन्नत, उन्नति-शील या प्रगतिशील व
अप्रगतिशील के तीन विभागों में विश्व के देशों को बाँटा गया है. पहले दोनों तरह की
श्रेणी के देश अपनी भाषा पर बहुत गौर करते हैं. पर हमारा भारत इसमें पिछड़ा है, क्योंकि
हमारे पास कहने मात्र के लिए राजभाषा है. इसमें आज भी कई तरह के विरोध हैं. देश के
नेताओं ने तो भाषा को राजनीति का विषय बना दिया है. दक्षिण भारत में खास तौर पर
तमिलनाड़ू में, हिंदी का पुरजोर विरोध है. अभी हाल में ही एक लेख पढ़ा जिसमें
विद्यार्थियों ने तमिलनाड़ू में भी हिंदी के शिक्षा के लिए अभियान छेड़ा है. नेताओं को चाहिए कि अतर्युद्ध छोड़कर देश की
विश्वस्तरीय स्थिति पर भी विचारें और देश में राजभाषा के स्थान को सुदृढ़करें.
अब आती है बात
कि ऐसा क्या किया जा सकता है कि लोग हिंदी के प्रति रुचि लें. इस पर मेरे कुछ
सुझाव हैं. इसका सर्वप्रथम मुद्दा उजागर करने के लिए मैं एक सवाल करता हूँ कि
हमारे देश की राजभाषा हिंदी होते हुए भी और बहुत सी दक्षिणी भारत व पश्चिमी भारत
की भाषाएँ समृद्ध होते हुए भी, लोग अंग्रेजी क्यों सीखते हैं. कुछ सोच कर बोलने
वाले ज्यादातर लोग यही कहेंगे कि –
·
अंग्रेजी के बिना विदेशों में न पढ़ाई
हो सकती है और न ही नौकरी.
·
अंग्रेजी के बिना IT Sector में काम करना या धंधा करना देश के किसी व्यक्ति
या संस्थान के लिए संभव नहीं होगा.
·
ज्ञान का भंडारण जो अँग्रेजी में हो रखा
है वह विश्व के (शायद) किसी भाषा में नहीं है. सो उस ज्ञान के अर्जन के लिए भी
अंग्रेजी जानना जरूरी है. इससे कई शोध कार्यों में सहायता मिलती है. पढ़ाई में
सहायक होती है. ज्ञान वृद्धि तो होती ही है.
इनके अलावा भी
बहुत से मुद्दे उभरेंगे पर वे सभी इन तीनों की अपेक्षाकृत कम महत्व के होंगे.
यदि हम इन
तीनों उत्तरों को ध्यान में रखकर सोचें, तो साफ नजर आएगा कि हमें हिंदी को शिखर पर
लाने के लिए क्या करना होगा. यदि हम इन विधाओं को हिंदी में भी अपना लें या हिंदी
के लिए भी इन बातों को कहने लायक हो जाएं तो किसी से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं
पड़ेगी. लोग अपने आप अपने लिए हिंदी सीखेंगे. उन्हें ज्ञान और धन चाहिए.
अब जवाब तो
मिला पर उसे कर दिखाना क्या आसान है. हिंदी भाषियों को और वे लोग जो हिंदी को “देश के ललाट की
बिंदी” जैसी
सर्वनाम देते हैं या फिर जो देश की भाषा के प्रति संवेदनशील हैं, या वे जो देश व
विश्व की भाषा के रूप में हिंदी को देखना चाहते हैं - वे सब एकजुट होकर इस दिशा
में कार्य करें और अन्य लोगों को जो साथ दे सकते हैं प्रोत्साहित करें कि इस दिशा
में समग्र कार्य हो तो कुछ वर्षों में हिंदी का स्थान देश में और विशव में माननीय
हो सकता है. आज हिंदी के नाम पर विश्व हिंदी सम्मेलन तो होता है किंतु सही दिशा
में कितना काम हो रहा है यह तो वे ही बता पाएंगे जो इस विश्व सम्मेलन में भागीदार
होते है.
अब यह समय बात
करने का नही काम करने का है. कुछ काम हो तो आगे बढ़ें वरना जहाँ पड़े वहाँ
सड़े...चरितार्थ होने जा रही है.
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माड़भूषि
रंगराज अयंगर.
8462021340
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