मौत
आईए,
तह-ए-दिल से स्वागत है आपका,
घर आया मेहमान,
जो मेह-समान है,
कब बरसे पता नहीं इसलिए,
जब भी बरसे पानी समेटो,
आभार मानो.
वैसे भी जब,
यह संस्कृति जन्मी थी तब
मेहमान के घर से निकलने पर,
मंजिल तक पहुँचने का दिन,
तो अनिर्णीत ही होता था
कई दूर दराज के लोग तो,
पहुँच ही नहीं पाते थे.
इसी कारण तीर्थ यात्रा पूरी कर आने,
पर यात्रियों की पूजा की जाती थी.
और शायद,
इसीलिए भारतीय संस्कृति में मेहमान ,
भगवत्स्वरूप माना गया है.
एक दिन मौत को भी मेरे दर आना है,
आएगी ही,
इससे घबराना कैसा ?
अपने दर जब भी आएगी,
पूरे जोश से स्वागत तो करेंगे ही,
हँसकर भी मिलेंगे,
एक ही बार तो आनी है,
और घर आए मेहमान को,
खाली हाथ थोड़े ही लौटाएँगे
अयंगर.05.06.2013.
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