चाँद पाना चाहता हूँ...
मैं चला अब चाँद लाने...
पांव धरती पर टिकाकर,
कद नहीं चाहूं बढ़ाना,
छोड़ना धरती न चाहूं,
किस तरह संभव करूं मैं,
सोचकर मन मारता हूं
चाँद लाना चाहता हूँ.
पूरबी संस्कृति को छोड़ना संभव नहीं,
बालपन से वृद्धता तक मैं तो बस इसमें पला हूँ,
सभ्यता पश्चिम में मैं,
जीवन के मजे को देखता हूँ,
चाहता दोनों सँजोना,
नाव दोनों पर सवारी
!!!
सोचकर मन मारता हूँ,
मैं तो खुद से हारता हूँ.
बैठकर अपने नगर में,
पेरिसों के ख्वाब देखूं,
सोचता हूँ सोच भर से,
मैं वहां तक पहुँच जाऊं
अपने नगर की मस्तियों से,
वंचित नहीं होना है मुझको,
पर चाहिए जग के मजे भी,
मैं नहीं चाहूँ सफर की यातनाएं,
क्यों सफर के जोखिम उठाऊं,
सफर में क्या क्या न गुजरे,
सोचकर मन मारता हूँ,
कुछ न खोना चाहकर मैं,
हर चीज पाना चाहता हूँ,
खुद मैं अपनी मूर्खता को,
सोचकर मन मारता हूँ,
पर चाँद पाना चाहता हूँ.
Wah! Kya bat hai!
जवाब देंहटाएंkoi chand bhi ,chand ko pana chahta hai!
Apni sari sab duaaen aaj tujhpe warte hain!
chand pane ki chahat liye is chand ko niharte hain!
जवाब देंहटाएंचलो , चाँद को किसी ने तो देखा....
धन्यवाद.
अयंगर
I like it
जवाब देंहटाएंJai
जवाब देंहटाएंडियर जय,
धन्यवाद.
अयंगर.