मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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बुधवार, 14 सितंबर 2011

कंधे


कंधे

               कंधे रगड़कर नहीं, कंधे मिला कर चलो,
               प्रगति तेरी मेरी नहीं हमारी समझकर चलो,
               व्यक्ति नहीं, समाज देश की सोचो,
               बराबरी पर टकराओ नहीं, साथ ले-दे कर चलो.

               किसी ने तुमको रौंदा है, उसे तुम रौंदना चाहो,
               जो तुमने झेल रक्खा है, उसे भी झेल जाने दो,
               सही है,लौह ही तो लौह को काटे, न्यायसंगत है,
               कुत्ता काट ले तो, मैं उसे भी काट लेता हूँ.

               फिर यदि मैं आदमी हूँ, तो वह कुत्ता क्यों?

               कंधों का सहारा तो, फिर भी मिल ही जाएगा,
               भले डोली में बैठी हो या हो जनाजे पर,
               न हो पांवों मे ताकत तो बैसाखी चलेंगी,
               लिए सहारा इन्हीं कंधों का,
               
               सँभालो इन सहारों को,
               रगड़कर नाश मत कर दो,
               पा लेने दो खुद को अंतिम सवारी,
               इन्हीं कंधों की.


              एम.आर. अयंगर.


2 टिप्‍पणियां:

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