मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

आँखों का डाक्टर


आँखों का डाक्टर.

गोपी अपने दादाजी के साथ अस्पताल गया. दादाजी को अपनी नजर की जाँच करवानी थी. बच्चा था सो साथ हो लिया. दादाजी भी उसे साथ ले जाने में खुश थे सोचा चलो बच्चा भी घूम आएगा. गोपी की उम्र कोई चार बरस की होगी. कद होगा कोई दो –ढाई फुट.

दादाजी के साथ गोपी भी लाइन में खड़ा हो गया. लाइन मेंउनके आगे कोई 7-8 लोग और थे. सब अपना अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे. लेकिन गोपी अपने छोटे कद का लाभ उठाता हुआ जॉक्टर और मरीज के झाँकता रहा. सरकारी अस्पताल था सो छोटे – छोटे फ्लेपर टाइप के दरवाजे थे जो बड़ो कीनजर को ढ़ंक लेती थी. इसलिए बचे देख भी नहीं पाते थे कि अंजदर क्या हो रहा है. उन फ्लेपर दरवाजों का मकसद भी यही था. लेकिन छोटे कद के गोपी की नजर को ये दरवाजे रोक नहीं पाए.

वह डॉक्टर का हर मरीज के साथ सलूक देखता रह. पहले डॉक्टर उनसे बात करते. फिर हाथों से पलकों को ऊपर नाचे करके देखते और बाद में अपने टॉर्चवाले लेंस से आँखों के भीतर देखते फिर परची में कुछ लिख देते.

जब दादाजा के आगे केवल दो लोग रह गए और तासरा नंबर दादाजी का था तब अचानक गोपी ने दादाजी का हाथ जोर से खींचा और बोला – चलिए दादाजी. अचानक के इस बर्ताव से दादाजी भी चौंके.. अरे क्या हो गया ?

गोपी अपने लहजे में बोला- आपको आँख दिखानी है ना ? चलिए किसी और डाक्टर के पास चलते हैं. दादाजी समझ नहीं पा रहे थे कि बच्चे के मन में क्या है?

कुछ रुककर गोपी खुद बोल पड़ा. मैं कब से डॉक्टर साहब को देख रहा हूँ, दिन में, चार-चार ट्यूबलाइट जलाकर और चश्मा पहन कर भी डाक्टर को टार्च से देखना पड़ रहा है. उनको ठीक से दिखता ही नहीं . ये क्या आँख को देखेंगे इन्हें तो खुद तकलीफ है. इसलिए आप यहाँ से चलो, किसी और डॉक्टर के पास आँख दिखा लेना.

अब दादाजी समझे कि बचपन की मासूमियत में पोता क्या-क्या सोच रहा है.


2 टिप्‍पणियां:

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