गलत फहमी
मेरी कहानी "गलत फहमी" पूर्वी संभाग, कोलकाता, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की गृहपत्रिका पहल के आठवें संस्करण में प्रकाशित हुई है. वैसे आपने इसे ब्लॉग पर पढा ही होगा. पुनः आनंद लें. लिंक दे रहा हूँ.
गलतफहमी
बीसवीं सदी की आखरी दशाब्दि. दिल्ली की सीमा पर बसा, तब परिचित, पर अब बहुचर्चित
शहर, काँक्रीट का जंगल, दिल्ली को पछाड़ने की होड़ में – नोएड़ा.
उन दिनों दिल्ली में नौकरी करने वाले अक्सर नोएड़ा में रहने आते थे. दिल्ली में मकान
मिलना – रहने के लिए ही सही – मुश्किल क्या नामुमकिन ही था – नौकरी पेशों के लिए.
सोनू भी नोएड़ा के एक कॉम्प्लेक्स में रहता था. एकाकी था, कोई 35 से 40 बरस के बीच
का. वह एक सामाजिक प्राणी था, दूसरों की मदद में हमेशा आगे रहता था, इसीलिए मुहल्ले
के बहुत सारे लोग उससे परिचित थे. बहुतों के घर आना जाना भी था.
एकाकी होने की वजह से भाभी लोग उससे मजाक भी कर लिया करते थे . मौके बे मौके
कभी - कभी खिंचाई भी हो जाती थी. बच्चों से उसे खासा लगाव था. यहाँ तक कि लाड़ में
बच्चे उसके नाम से खान पान की छोटी मोटी चीजें जैसे टॉफी, आईसक्रीम ले लिया करते
थे, पर उसने कभी किसी को मना नहीं किया.
https://laxmirangam.blogspot.com/2015/08/blog-post_31.html
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