जिद
जायज न हो शायद तुझे दोष देना
कन्हैया, मगर मैं तो मजबूर हूँ.
तुम्हारे किए का हरजाना देने, मैं
कब तक सहूँ, मैं कब तक मरूँ.
इस मोड़ पर जिंदगी के मेरे तुमने
चौराहे लाकर खड़ा कर दिया.
जिस गली लाँघकर मैं यहाँ आ गया था
फिर उस गली में लाया गया.
नहीं रास मुझको अभी भी गली यह,
तुम्हें भी निराशा ही हाथों लगेगी,
तकदीर तुमने लिख क्या दिया है,
मजबूर उससे मुझे तुम करोगे ?
मजबूर उससे मुझे तुम करोगे ?
देख लेना बदलना पड़ेगा तुम्हें ये,
मेरे कर्म मजबूर तुमको करेंगे,
ठाना समझ सोच कर मैंने, मुझको
कोई लीक से ना जुदा कर सकेंगे,
जो भी किया तुमने सही तो नहीं है,
तेरी जिद, मेरी जिद से बड़ी तो नहीं है.
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