मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

पावन गंगा



पावन गंगा

काश !!!
तुम्हारी ख्वाहिश का,
मैं कुछ कर पाता.
जीवन के इस चौराहे पर,
उन प्रश्नों के उत्तर पाता,

मेरे जेहन में कभी भी
ऐसे, प्रश्न नहीं उभरे थे,
नहीं समझ आता है मुझे क्यों ?
यह, सोच मेरी से परे थे.

प्रश्न तुम्हारे, मेरे लिए भी
जिज्ञासा से भरे थे,
पर शायद मेरे दृढ़ निश्चय,
इन प्रश्नों से खरे थे.

एक पाव भर बाकी है,
पार तीन तो पाव हुए,
ना गिन पाऊँ किन मोड़ों पर,
दिल पर कितने घाव हुए.

समय सभी का ख्याल कर गया,
दिल फिर अब भी है चंगा,
लाखों का धो पाप अभी भी ,
पावन है अपनी गंगा.
....................










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