मेरा जिन्न
कल सुबह अचानक ही मेरी मौत हो गई.
मैं लाश लिए काँधे किसी दर निकल पड़ा,
सब राहगीर देखते ही सकपका गए,
फिर हँस पड़े और "वो पागल है" कह गए.
चलता रहा मैं राह अपनी सब को भूलकर,
बिन दाना बिन पानी सड़को की धूप पर
कोई छाँव दिख गया तो किसी पेड़ पर रुका,
बस आँख जब थकी तो धरती प’ ही झुका
कब तक मैं फिर सकूंगॉ, ढो ढो के लाश को,
काँधों में नहीं जान बची और ढ़ो सकूँ.
सड़ने लगेगी लाश अब कुछ ही समय में बस,
यह सोच इसे आज मैं दफना के आ गया.
कल राह जो लौटूँ तो ना समझना कि मैं ही हूँ,
मैं तो दफन ही हो गया, वो जिन्न है मेरा,
कुछ देर दिखेगा फिर वो हो जाएगा गायब,
ना जाने कहाँ किसको कब नजर आएगा.
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