इस गली में आना छोड़ दो
रे चाँद,
हर रात, इस गली
आया न करो.
इस गली आना छोड़ दो.
आते तो हो, इस बहाने
कि अँधियारी रात को
शीतल मद्धिम उजाला दे दो.
पर तड़पा जाते हो
न जाने कितने विरहनियों को
सागर की लहरें
तुम्हें प्यार करने लगीं हैं
उठ उठ कर,
सागर को छोड़
तुम तक पहुँचने और
मधुर मिलन को आकुल
अथक प्रयास करती रहतीं हैं,
निशि दिन,
पर हाय निरर्थक.
पहुँच नहीं पातीं तुम तक
फिर भी वे रुकती नहीं हैं.
क्यों करते हो उन्हें परेशान?
उधर चातक बेचारा,
मुँह बाए खड़ा रहता है,
शीतलता की एक बूँद के लिए,
तुम्हें निहारता ही रहता है,
पता नहीं, उसकी प्यास कब बुझेगी,
पता नहीं, उसकी प्यास कब बुझेगी,
बुझेगी भी कि नहीं?
इनके साथ तड़पते हैं,
एकाकीपन लिए
प्रियतम - प्रियतमा
अलग अलग
अपनी अपनी ठौर !!!
कई तो तुमसे ही
आस रखते हैं
साजन - सजनी को
संदेशा पहुंचा दो,
और तुम हो कि
खुद बनते हो
उनकी वेदनाओं का कारण.
क्यों बनते हो?
कोई जरूरी है
रोज इस गली की सैर करना,
रोज इस गली की
खाक छानना !!! और
सबको विरह की वेदना देना,
सोचो समझो,
अब इस गली में आना छोड़ दो,
इस तरह इस गली आया ना करो.
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