स(विष)मताएं.
(http://www.hindikunj.com/2015/12/oddities.html)
सन 1990 के दशक में ही दिल्ली के आई टी ओ पर सिग्नल लाल होने पर रुक रहने
के बाद, उसके हरा होने पर आँखें लाल हो जाती थीं. उस समय एल एन जी वाली गाड़ियाँ
दिल्ली में आई नहीं थीं. एल एन जी के आने पर इसमें सुधार हुआ और हर तरफ से एल एन
जी का गुण गान शुरु हो गया. मुझे लगा कि दिल्ली की हवा पहले से बेहतर श्वसन योग्य
हो गई है. बाद में एकाध बार जब वहाँ जाना भी हुआ तो ज्यादातर समय नोएड़ा में ही
बीता. इस दौरान वायु में विषता कम महसूस
हुई. अब जब हायतौबा मच रही है. तब लोग परेशान हो गए हैं और तो और कोर्ट ने भी इस
पर टिप्पणी दी है. हो सकता है कि इस बीच गाड़ियों की संख्या बहुपत बढ़ गई हो या फिर गड़ियों के पोल्यूशन चेक वाले वैसे ही सर्टिफिकेट बाँट रहे हों.
अब लगता है अरविंद सरकार में कुछ हलचल मची है. आकस्मिक सभा के उपराँत
उसने सम – विषम योजना का प्रस्ताव दिया. पहले तो कहा एक जनवरी सो लागू होगा. फिर
बोले यह तो केवल एक प्रयोग है यदि इससे दिल्ली वासियों को तकलीफ होती है तो वापस ले लिया जाएगा.
मुझे लगता है कि अरविंद की दिशा ठीक है. अब तो हर घर में दो या ज्यादा
चौपहिया हो गए हैं. दुपहियों की गिनती ख्तम हो चुकी है. दो कीक्या कहं तीन कहीं
चार भी हैं. हो सकता है कि कुछ के पास सम – विषम दोनों नंबर की गाड़ियाँ हों. यदि
नहीं होगे तो वे गाड़ियों का अदला बदली कर सकते हैं – आपस में. या फिर (यदि जरूरी
हो तो एक गाड़ी बेचकर) दूसरी सम या विषम जैसे जरूरी हो खरीद सकते हैं. जिनके पास
केवल एक ही गाड़ी है और दूसरे की सोच रहे थे वे अब जल्द निर्णय लेंगे किंतु शर्त
होगी कि नई गाड़ी का नंबर पुराने से अलग हो यानि सम - विषम सापेक्ष में.
इस तरह से चौपहियों वाहनों की बिक्री भी बढ़ेगी. गाड़ियों का धंधा बढ़ेगा.
सरकार को टेक्स के रूप में आमदनी होगी.
दूसरा यह कि जब सम संख्या की गाड़ियाँ चलेंगी तो विषम संख्या वाले
गाड़ियों के मालिक सम संख्या वाले कारों में समाने की कोशिश करेंगे. जिससे पूलिँग
विधा का पुनःप्रतिपादन होगा. सरकार अपने बात पर टिकी रह सके तो निश्चय ही पूलिंग
बढ़ेगी. हो सकता है कि पूलिंग के दौरान गाड़ियाँ कुछ ज्यादा कि.मी. चलें, किंतु
पहले से कम ही रहेंगी. गाड़ियों की मरम्मत व सर्विसिंग के लिए समय मिल जाया करेगा
जिससे उनके रखरखाव में बेहतरी हो सकती है. स्वाबाविक है कि इससे ईंधन की खपत कमेगी
और सवारियों को बेहतर सुविधा प्राप्त होगी. लोग जल्दबाजी में ज्यादा पैसे देकर
करवाने वाले काम अब आसानी से हो जाया करेंगे. बल्कि वह पैसा टोक्सियों पर खर्चने
में उन्हें आनंद मिलेगा.
तीसरा जिन्हें सम – विषमताओं के कारण कार निकालनी नहीं है और जिन्हें पूल
भी रास नहीं आ रहा हो तो वे टेक्सियों में या फिर बसों में सफर करेंगे. जिससे इनका
भी धंधा बढ़ेगा.
सरकार को चाहिए कि इसके साथ साथ पोल्यूशन कंट्रोल की चेकिंग पर भी ध्यान
दे. सरप्राईज चेक करने पर पाए हद के बाहर जाने वाले वाहनों पर भारी भरकम जुर्माना
लगाया जाए ताकि कोई ऐसा करने की हिम्मत न कर सके. यदि चेक का सर्टिफिकेट 15 दिनों
या एक महीने के अंदर का हो तो चेकिंग एजेंसी को एक चेतावनी देकर दूसरे बार उसका
लाईसेंस ही रद्द कर दिया जाए. ऐसे में गाड़ियाँ सही मायने मे पोल्यूशन चेक कराकर
ही सड़क पर निकलेंगी. अब तो चेक कराने के लिए समय ही समय होगा. ईंधन भरते समय भी
पोल्यूशन चेक की सुविधा दी जाए और वहीं निरीक्षकों द्वारा औचक चेकिंग की जाए.
इस संबंध में यह भी उचित होगा कि डीजल गाड़ियों पर भी कड़ी पाबंदी की
जाए. दिल्ली का प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए जरूरी होगा कि यह सब नियंत्रण नेशनस
केपिटल रीजियन पर लगाए जाएं न कि सिर्फ दिल्ली पर. अन्यथा पास पड़ोस के शहरों-
इलाकों से प्रदूषण दिल्ली का तरफ आएगा. जितना ज्यादा इलाका नियंत्रित रहेगा... मध्य
तक उतना ही कम प्रदूषण पहुँच पाएगा. दस या पं0रह साल पुरानी गाड़ी से कोई फर्क
नहीं पड़ता बशर्ते कि उसका प्रदूषण नियंत्रण सही रहे. लेकिन समस्या तो यह है कि
प्रदूषण नियंत्रण के सर्टिफिकेट तो ऐसे ही मिल जाया करते हैंय. उन पर कठोर
नियंत्रण पर ही प्रदूषण पर सरही नियंत्रण पाया जा सकेगा. इन सबसे प्रमुख यह कि
दिल्ली में दिल्ली के प्रदूषण नियंत्रक चेकिंग वालों के स्टिकर ही मंजूर किए जाएं.
सरकार ने मात्र महिलाओं की गाड़ियों पर इस कानून को लागू नहीं करने का इरादा किया है. शायद यह लिंग भेद के दायरे में आए. हाँ इकलौता महिला के लिए छूट देना, सामाजिक सुरत्रा के दायरे में ली जा सकती है. जहाँ हम लिंग भेद को समाप्त कर बराबरी की बात करते हैं वहाँ इस तरह की विशिष्टता शोभनीय नहीं है.
बस एक बात गले नहीं उतरी कि यह समता – विषमता सरकारी गाड़ियों के लिए
क्यों मान्य नहीं है ? मुझे तो यही एक दोष नजर आता है. क्या सरकारी लोग जनता की तरह इस इंतजाम के बाद अपना पूरा कार्य़
कर पाने में सक्षम नहीं हैं ? उनसे भी इस
प्रकार की माँग क्यों नहीं की जाती ? जब जनता से उम्मीद की जाती है
कि इन सब बंधनों के बाद भी वे अपने कार्यालय समय से पहुँचें, आवश्यकतानुसार
कार्य करें तो सरकारी लोग ऐसा क्यों नहीं कर सकते ? उन्हें
अतिरिक्त सुविधा की जरूरत क्यों आन पड़ी? ऐसे ही कारणों से सरकारी
कर्मचारी निकम्मे होने का स्टाम्प पा जाते हैं. क्या अरविंद भी अपनी सरकार के
लोगों को ऐसा ही समझते हैं. यदि हाँ तो उन्हें अपने प्रशासन में रही कमी को भी दूर
करना होगा.
मैं तो चाहूंगा कि अरविंद सरकार अपने निर्णय पर बनी रहे और कार पूल की
परंपरा को उजागर करे. कारों के बिक्री का धंधा बढ़ाए. लोगों को टेक्सी व बसों में
जाने के लिए प्रेरित करे. कठिन तो है किंतु इससे पर्यावरण में बहुत कुछ सुधार होने
की सभावना है. वैसे भी दो एक दिन में तो असर नहीं दिखेगा, कम से कम एक साल तो ऐसा
चलाना ही होगा ताकि असर का आकलन किया जा सके.
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एम.आर.अयंगर.
7462021340.
वेकटापुरम, सिकंदराबाद
वेकटापुरम, सिकंदराबाद
तेलंगाना, 500015
laxmirangam@gmail.com
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