मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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मंगलवार, 7 अक्टूबर 2014

रिश्तों की मिठास

रिश्तों की मिठास

करीब 20-25 बरस पहले की बात है. हमारी एक परिचित भाभीजी ने मेरे घर की चाबी माँगी. व्यवहार वश मजबूर बिना कोई सवाल किए मैंने चाबी उनके सुपुर्द कर दी. वे बोलीं शाम के ऑफिस से लौटते वक्त घर से चाबी ले जाईएगा. मैंने कहा ठीक है और ऑफिस का रुख कर गया.

भाई साहब तो साथ में ही कार पूल में चलते थे.  शाम को जब ऑफिस से लौटा तो सीधे उनके घर जाकर, समय का तकाजा था चाय पी और चाबियाँ ली. घर पहुँचा तो लगा कि क्या यह मेरा ही घर है ? एक दम साफ सुथरा, जैसे किसी ने झाड़ू - पोछा तो क्या रगड़-घस कर साफ किया हो. समझ नहीं आया कि ऐसा क्या हुआ, माजरा क्या है ?

चलिए मन को तो मना लिया. सोचा भाभी जी को लगा होगा, कि मेरा घर बहुत गंदा है और मैं सफाई का कोई ध्यान नहीं देता, सो उनने मेहरबानी कर दी. अपनी कामवाली को बोलकर मेरा घर अपनी श्रद्धानुसार साफ करवा दिया होगा. लेकिन रात भर नींद नहीं आई, यही सोचते हुए कि भाभी जी ने ऐसा क्यों किया.

दूसरे दिन फिर वहीं माजरा... भाई साहब चाबी देकर जाईएगा. सोचा अब क्या होगा ... लिपाई – पोताई ? खैर चाबी तो देनी ही थी, सो दे गया. आज यह नहीं कहा कि शाम को घर से चाबी लेते जाईएगा. मैंने सोचा - आज कुछ खास होने वाला है. मन परेशान था कि क्या होगा. शाम तक ऑफिस के काम में भी मन नहीं लगा, इसी सोच में कि आज कुछ होने वाला है.

शाम को घर लौटे तो दोस्त ने कहा यार मेरे घर चल. जाना तो वैसे भी उसी के घर था, क्योंकि चाबी तो वहीं थी. पर यह क्या ? भाभी जी घर पर नहीं हैं न ही चाबी. बड़ी मुसीबत हो गई. दोनों ने थर्मस में रखी चाय पी ली और बाहर आ गए. दोस्त के कहने पर बाहर ग्राऊंड में बने काँक्रीट बेंच पर बैठ गए. थोड़ी देर खोए रहने के बाद ऐसा लगा कि मेरे घर की तरफ से बच्चों की आवाजें आ रही हैं.

स्वाभाविकता वश उधर मुड़ कर देखा तो पाया कि – बहुत सारे बच्चे मेरे घर की बालकनी में खेल रहे हैं, शोर कर रहे हैं. साथ में कुछ स्त्रियाँ भी हैं. मेरा मन तो और भी परेशान होने लगा. यह सोच कर कि भाभी जी ने मुहल्ले की सारे  लेड़ीज को मेरे घर इकट्ठाकर लिया जबकि मेरे घर की कोई स्त्री है ही नहीं. सोचा आज उनने अपनी किटी पार्टी मेरे घर रख-रक्खी है. अब समझ में आया कि भाभी जी पिछले दो दिनों से मेरे घर की चाबी क्यों माँग रहीं थी. सफाई इसलिए कराया कि पार्टी में जो गंदगी होगी तो फिर पुरानी हालात में आ जाएगा.

किसी तरह सभा संपन्न हुई और बिटिया बुलाने आई ... पापा - अंकल मम्मी बुला रही हैं. उसके घर  पहुँचे तो  मुझे चाबी मिल गई और मैं अपने घर चला आया. थोड़ी देर छोटे - मोटे काम पूरे किए और बाहर चला आया. देर रात खाना बाहर से खाकर लौटा और सो गया.

अगले दिन शाम को मैने भाभी जी के घर धावा बोल दिया कि जानूँ तो सही मामला था क्या ?  जानकर मेरी जो हालत हुई उसका क्या कहूँ.

बताया गया कि कल करवा चौथ थी और मेरे घर के बालकनी से चाँद सबसे पहले और सब जगहों की अपेक्षाकृत साफ दिखता है. सो भाभी जी के माध्यम से मुहल्ले की स्त्रियों ने मेरे घर से चाँद निहारने का निर्णय लिया. इसी लिए मुझे बिना कारण बताए, हक जताकर चाबियाँ ली गईं.

मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाया. एक तो मैं रहा इकहरा – कुँवारा. जहाँ साधारणतया स्त्रियाँ आना पसंद ही नहीं करती. दूसरा दिन करवा चौथ का जब हर स्त्री अपने अपने घर पर रहना चाहती है, ताकि चाँद निहारने के बाद पति के दर्शन कर, उनके हाथों कुछ खाकर उपवास तोड़ सकें. 

लेकिन, कल करवा चौथ के दिन मुहल्ले की बहुत सारी स्त्रियाँ मेरे घर में इकट्ठी होकर करवा चौथ मना रही थीं. मैने भाभीजी से सारे सवाल किए...देवर भाभी के रिश्ते की मिठास का सही जायजा मुझे उसी दिन मिला. इतने बरसों बाद भी वाकया पूरी तरह याद है.

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एम.आर अयंगर. 08462021340

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