मासूमियत और आत्मीयता के रिश्ते
राजेश के पिता एक सरकारी महकमे के
कार्यरत थे. सरकारी महकमे के मुहल्ले में, उनके घर के
ठीक सामने, उसी सरकारी महकमे के एक और कर्मचारी
रहते थे. उनके घर एक छोटा प्यार सा
बेटा था - गोपी और एक थी, प्यारी सी बेटी - रानी. इनके अलावा भी
घर में दो बच्चे और थे.
एक बड़ा लड़का प्राणेश और उससे छोटी बहन सीमा. कुल छः
लोगों का परिवार था.
परीक्षा अवधि में पिताजी के तबादले के
कारण राजेश, रानी के घर
रहकर पढ़ता था और वहीं से
परीक्षा देने की सोच रहा था. शायद अगले सत्र में हॉस्टल
चला जाता. रानी तब शायद
दूसरी - तीसरी कक्षा में पढ़ती थी. राजेश मेडिकल के तीसरे
वर्ष में था. रानी की छोटा भाई, जो
अभी करीब सवा - डेढ साल का था, राजेश से खूब हिला-मिला था. दोनों आपस
में खूब खेला
करते थे. राजेश जब अपने घर पर रहता था, तब भी राजेश के कालेज से आने के समय, सोता
हुआ गोपी, उठकर आँखें मलते हुए, भरी दोपहरी में नंगे पाँव सड़क पार करते
हुए राजेश के घर
पहुँच जाता था. पता नहीं कितनी बार ऐसा हुआ, पर उस ऊपर वाले की कृपा कि कभी बच्चे
के
पैर नहीं जले और न ही कोई सड़क हादसा हुआ. राजेश पढ़ने में तेज था. अब तक की
सारी
परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में ही पास की थी.
राजेश के पिता रानी के पिता के मित्र
थे. दोनों एक ही महकमे में काम करते थे. रानी के पिता
की टूरिंग ड्यूटी होती थी जब
कि राजेश के पिता की ड्यूटी शहर में दिन-दिन की ही होती थी.
अब उनका तबादला दूसरे
शहर हो गया था. राजेश की पढ़ाई में तल्लीनता और मददगार
गुण
देख कर रानी की माँ को वह भाने लगा. स्वभाव से मिलनसार, पढ़ाई में मन लगाने वाला राजेश
घर में
उपयोग होने वाली मशीनों की अच्छी खासी देखरेख कर लेता था. बिजली के बारे में भी
उसे ज्ञान था. कभी कभार पंखा - लाईट खराब होने पर वह सुधार कर दिया करता था. इस
तरह रानी के घर में जैसे राजेश को घर की सुविधा थी, वैसे ही रानी के घर वालों को एक
बेटे की
सुविधा मिल गई . धीरे धीरे ऐसे ही रिश्ते कायम होते चले गए. रानी की मां ,
जिसे राजेश मासी कहा करता था, उसे पसंद करने लगीं. मासी राजेश के लिए
सही मायने में
माँ-सी ही थीं. अक्सर लोगों से राजेश को अपना बड़ा बेटा बताती और
फूली नहीं समाती थी.
रानी बहुत ही शर्मीली और भोली भाली
लड़की थी. उसके मासूमियत की तो हद थी. वह अपनी
माँ से अक्सर पूछा करती थी कि आज तो
राजेश भैया के हम राजू-राजू पुकारते हैं, जब वह
डॉक्टर बन जाएगा तो क्या
पुकारेंगे. ऐसे मासूम सवालों से वह सबका मन जीत लेती थी.
उसे दुनियादारी की बहुत
कम खबर होती थी. माँ से बहुत लगाव था इसलिए माँ के साथ
बर्तन साफ करने में भी, उनका हाथ बँटाती थी. एक बार किसी अंकल
ने उससे प्यार से
पूछा- रानी, बड़ी होकर तुम क्या बनना चाहोगी ? उसने तपाक से उत्तर दिया - काम वाली
बाई. सब हँस पड़े और वह झेंप गई. काम वाली बाई के आने से मम्मी को जो सहूलियत
हुआ
करती थी. उसी से उसने सोचा कि माँ की सबसे बड़ी सहायता करने के लिए काम वाली
बाई
बनेगी. यह था परिचय उसके मासूमियत का.
इसी मासूमियत के कारण उसका राजेश से भी
अपनापन बढ़ने लगा. दोनों आपस में काफी
घुल मिल गए. यहाँ तक कि खाने के लिए भी वह राजेश
का इंतजार करती रहती. उधर
राजेश भी उसे बहुत चाहता था. जब मासी बीमार होती तो सुबह
उठाने से लेकर, नहलाना,
नाश्ता तैयार कर नाश्ता कराना, कपड़े प्रेस कर , पहनाकर , स्कूल तक छोड़कर आना – धीरे
धीरे राजेश का काम सा ही हो गया.
ऐसे वक्त रानी के साथ उसकी बहन सीमा भी होती थी.
राजेश रानी से कोई 12-13 साल बड़ा था.
मासी राजेश का खास ख्याल रखती थी. उसे
किसी भी तकलीफ न हो इसका विशेष ध्यान
रखती थी. सुबह उसे चाय के प्याले के साथ
उठाती थी और देर रात को जब वह पढ़ाई
पूरी कर सोने जाता तो उसे चादर-कंबल ओढ़ा कर
ही सोने जाती थी. राजेश को हर प्रकार
की सुविधा मिले इसका वह खास ध्यान रखती थी.
इन्हीं कारणों से राजेश अपने आपको
उनका एहसानमंद मानता था. ऐसी सुविधा तो उसे घर
पर भी उपलब्ध न थी. उसके लिए
यह ऐयाशी थी. लेकिन हाँ कही - कहीं मासी के घर के
नियम सख्त भी थे जैसे - खाने
की मेज पर हर किसी को (मौसा जी को भी) अपनी थाल व
गिलास धोकर साथ लाना होता
था. थाल में हाथ धोने की मनाही थी. भोजन के बाद सबको
अपनी थाल और गिलास धोकर
एक निश्चित श्थान पर रखना पड़ता था. जाँच कर, धोकर ही मासी उन्हें ठिकाने पर रखती थी.
हर सदस्य को अपने चाय के कप, गिलास, नाश्ते की
तश्तरी धोकर रखना होता था. राजेश की
एक आदत अच्छी थी और सबको भाती थी कि वह सुबह
उठते ही नहा - धोकर तैयार हो जाता
था और उसके बाद ही चाय होती थी. परीक्षा के
दौरान तो मासी ने बेड-टी की आदत डाल दी
थी, पर उसके तुरंत बाद बेड-टी की आदत खत्म
कर दी गई थी.
घर में राजेश ऐसे घुल मिल गया था, जैसे वह घर का ही सदस्य हो. एक बार जब
मासी
अस्पताल में भर्ती हुई, तो मौसा जी को चिंता हो गई कि छोटे बच्चे को कैसे सँभाला जाए. उनकी
चाह थी कि यदि वह राजेश से सँभल जाए, तो खुद अस्पताल में रह कर मासी की
देखभाल कर
सकेंगे. लेकिन सवाल था कि क्या बच्चा राजेश के साथ रह सकेगा ? हालात को देखते हुए उनने
यही उचित समझा
कि एक बार बच्चे से ही जान लेते हैं कि उसकी मासूमियत क्या कहती है.
मौसाजी ने
बच्चे से पूछा कि वह किसके साथ रहना चाहेगा. राजेश के साथ या पिताजी के साथ
ताकि
दूसरा व्यक्ति अस्पताल में रह सकेगा. बच्चा असमंजस में तो पड़ गया क्योंकि वह किसी
को छोड़ना नहीं चाह रहा था. जब बात उसे बार बार बताई गई कि एक को अस्पताल में रहना
ही पड़ेगा. मम्मी के पास – तब जाकर
उसने मुँह खोला कि राजेश को उसके साथ रहने दिया जाए।
और अतिम निर्णय यही हुआ – मौसाजी रात भर मासी के पास अस्पताल में
रह गए.
परीक्षाओं के बाद राजेश तो हॉस्टल चला
गया, पर अक्सर
मासी के घर आ जाया करता था.
समय समय पर खा पी कर वहीं रुक भी जाता था. कहने को तो
राजेश हॉस्टल मे रहता था, पर
पूरी
पढ़ाई के दौरान राजेश अक्सर मासी के यहाँ ही रहता था. केवल परीक्षाओं के दौरान
उसका
आना जाना कुछ घट सा जाता था.
पढ़ाई को बाद राजेश नौकरी में जगह जगह
नियुक्त होता रहा. मासी-मौसा और बच्चे समय समय
पर सुविधानुसार वहाँ जाते और आस पास
के इलाके घूम कर आते. साल में कभी एक बार राजेश
भी मासी के घर आता और परिवार के
सभी लोंगों से मिलता रहता.
इसी तरह राजेश और रानी के बचपन की यादें
भी हर वक्त तरोताजा होती रहीं. शादियाँ हो गईं,
परिवार-कुनबा बढ़ा पर बचपन के रिश्ते
कायम रखे गए, जो अगली
पीढ़ी तक पहुँच गए. सभी
अपने अपने परिवार में खुशी खुशी जीवन यापन करते रहे.
शायद ऐसे ही रिश्ते आत्मीय कहलाते हैं, जो खून के रिशते-बंधन कतो नहीं होते पर
उनसे मजबूत
होते है. कहते हैं कि खून पानी से गाढ़ा होता है . लेकिन इस अत्मीयता
और अपनेपन के आगे
खून भी पतला पड़ जाता है और खून के रिशते भी फीके पड़ जाते हैं
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माड़भूषि रंगराज अयंगर.
मासूमियत, बचपन
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