गैरपरंपरागत उपात्दन और ऊर्जा संरक्षण –
देश की इकोनॉमी.
कृष्ण ने गीता
में कहा और आदि-शंकराचार्य ने अपनी रचना भज गोविदं में कहा कि आत्मा न मरती है न पैदा होती है. यह मात्र रूप
बदलती है. जिसे हम पुनर्जन्म कहते हैं.
उसी तरह से
आईन्स्टाईन ने सिद्ध किया कि ऊर्जा न तो नष्ट होती है, न ही पैदा की जा सकती है –
यह केवल रूप बदलती है. इससे यह समझा जा सकता है कि ऊर्जा सीमित है असीमित नहीं.
इसके विभिन्न रूपों का संयोग (विनियोग के लिए ऊर्जा) स्थिर है.
तो फिर हम
ऊर्जा की खपत से चिंतित क्यों हैं. मेरी समझ कहती है कि चिंता इस बात की है कि हमारे ऊर्जा खपत के तरीके ऊर्जा का रूप
परिवर्तन इस प्रकार
करते हैं कि उनका पुनरुपयोग पूरी तरह से नहीं हो पाता. कुछ भाग गर्मी या रोशनी उत्पन्न
कर, तो कुछ भाग धुआँ बनकर खप जाता है. ऊर्जा वातावरण में समा जाती है और उसे पुनः सामान्य
तरीकों से
प्राप्त नहीं किया जा सकता.
ऐसा मानना कि
ज्ञात ऊर्जा के स्रोत अक्ष्क्षुण्ण हैं - एक गलत मानसिकता की सोच है. ऊर्जा जब दिन
ब दिन खपती जा रही है तो उसका ह्रास तो होगा. यदि ऊर्जा का भौतिक परिवर्तन हो रहा
है और उसका पुनः प्रयोग संभव है, फिर तो ठीक है अन्यथा नहीं.
मानवीय
उपयोगों में कुछ ही ऐसे ऊर्जा के उपयोग हैं जिनमें पुनःप्रयोग संभव है. बिजली जो
रोशनी के लिए उपयोग हो रही है, वह प्रकाश में तबदील होकर खप जाती है. पुनः प्रयोग
की संभावना ही नहीं होती. उसी तरह हीटर में गर्मी के रूप में ऊर्जा खप जाती है और
अनुपयोगित गर्मी वातावरण में बिखर जाती है. ये तो दो छोटे छोटे उदाहरण हुए और ऐसे
कई होंगे. अब देखिए डीजल-जेनेरेटर में डीजल खपा कर एंजिन आल्टरनेटर चलाया जाता है.
एंजिन का प्रयोग कर जनेरेटर का चलाया जाता
है. फिर उससे उपजी ऊर्जा से विद्युत उपकरण चलाए जाते हैं. इस विधि में डीजल जल
गया. एंजिन और जेनेरेटर में घर्षण की ऊर्जा बरबाद हुई. फिर विद्युत यंत्रो में
पावर फेक्टर की वजह से ऊर्जा का कमतर उपयोग (मैं तो कहूंगा दुरुपयोग) किया गया. इस
तरह हमें खपे डीजल की पूरी ऊर्जा पुनः उपयोग हेतु नहीं मिली. और जो रोशनी व गर्मी
के लिए उपयोग किया, वह तो गई. हाँ नई तकनीकों से घर्षण को कम किया जा सकता है.
तकनीकी जानकारी रखनेवाले जनते होंगे कि घर्षण को कम किया जा सकता है हटाया नहीं जा
सकता.
मैं इन
उदाहरणों से साबित करना चाहता हूँ कि – यद्यपि सैद्धान्तिक रूप में ऊर्जा पूर्ण-परिवर्तनशील
है, पर मानव ने उपयोग के जो तरीके अपनाए हैं उनमें ऊर्जा पूर्णतः परिवर्तनशील नहीं
है. कुछ न कुछ ऊर्जा का ह्रास हो ही जाता है. इस विषय पर ध्यान देना व ऊर्जा के
पुनरुपयोग के रास्ते खोलने से वही ऊर्जा अधिक प्रायौगिक हो सकेगी. यहाँ ऊर्जा
ह्रास का तात्पर्य ऊर्जा के नष्ट होने से नहीं है... कहा यह जा रहा है कि...ऊर्जा
यह परिवर्तित रूप हमारे लिए उपयोगकर नहीं है.
एक प्रयोग
कीजिए जिसमें आप एक ही तरह की दो-चार मोमबत्तियों के पैकेट लीजिए. एक को मोमबत्ती
को जमीन पर या मेज पर लगाईए और दूसरे को एक कटोरी में लगा दीजिए. कटोरी मे पहले से
एक लंबी बाती रख दीजिए. कटोरी के मोमबत्ती से जलकर मोम जब पिघलेगा को वह कटोरी में
गिरना चाहिए. देखिए कौन सा ज्यादा देर जलता है. संभवतः कटोरी वाला ज्यादा जलेगा.
जमीन पर या टेबल पर रखी मोमबत्ती एक बार जलने के बाद खत्म ही हो गई. यदि इतनी मोम
बत्तियाँ जल जाएं कि कटोरी मोंम से भर जाए, तो कटोरी में रखी बाती को जलाईए. वह
मोम से भरी कटोरी एक और मोम बत्ती का काम करेगी. यह मोम बत्ती जब-जब जलेगी मोम
पिघलता जाएगा और फिर कटोरी में ही गिरेगा. मोमबत्ती बंद होने पर मोम जम जाएगा और
फिर अगली बार जलाया जा सकेगा. इसका मतलब
यह न समझिएगा कि मोम अनंत समय तक जल सकेगा. जितना मोम पिघलता है, वह पुनरुपयोगी है
और जे गर्मी में वाष्पित हो जाता है वह खपत है जिसका पुनरुपयोग असंभव है. इस तरह
मोम का दिनों - दिन ह्रास होता रहता है क दिन मोम समाप्त हो जाएगा.
इस तरह से
खपते ऊर्जा की कमी पूरा करने के लिए यदि नए स्रोत खोजे न जाएं तो – कोई दिन तो
ऐसा आएगा कि मानव को ऊर्जा मिलनी कम होते
होते बंद हो जाएगी. तब फिर हवाई जहाजों मेट्रो और कारो से लौट कर बैलगाड़ी का
जमाना आ जाएगा. आज का आराम परस्त मानव उस युग की सोच भी नहीं सकता, पर धीरे धीरे
हम वहीं जा रहे हैं.
इधर भारत में पीसीआरए
नामक संस्था पेट्रोलियम उत्पादों के सही उपयोग के बारे सुझाव देती रहती है.
विद्युत उत्पादन कंपनियाँ विद्युत ऊर्जा के बचाव के तरीके बताती है. वैसे ही कोयला
उत्पादन कंपनियाँ कोयले के बचत की बातें करती है. जगह जगह स्कूलों और संस्थाओं में
जाकर इसकी जानकारी देती रहती है.
लेकिन सवाल इस
बात का है कि कितने समझते हैं और उनका प्रयोग करते हैं. कार पूलिंग उनमें एक है.
हर साहब की एक गाड़ी तय होती है. सब अपनी अपनी गाडियों में घूमते हैं भले ही एक ही
जगह से एक ही जगह जा रहे हों. शायद आत्मसम्मान की बात है या फिर घमंड की बात है.
जो भी हो पेट्रोलियम उत्पाद का नाश हो रहा है. अच्छी भाषा में कहे तो – दुरुपयोग -
हो रहा है. गाडियाँ ठेके – किराए की हों, कंपनी की हो या फिर अपनी खुद की हो – पर
जलता तो ईंधन ही है.
कुछ ऐसे सुझाव
भी हैं जिन्हें पीसीआरए भी चूक जाती है. जैसे --- किसी भी ऑटोमोबाईल वाहन को हर
दिन या कम से कम हर हफ्ते कुछ तो चलना चाहिए ताकि उसी दौरान बैटरी चार्ज हो जाए.
वाहन के अंग प्रत्यंग में तेल का विस्तार हो और जगह जगह तेल जमने से बचे. वरना जमा
हुआ तेल, वाहन के चालू होने पर उसके पुरजों में खरोंचें पैदा करेगा, बैटरी खराब
होती रहेगी और तो और खड़े रहने की वजह से वाहन के टायर – ट्यूब भी खराब होते
जाएंगे. यदि हवा कम हो गई तो और मुसीबत — जल्दी ही उन्हें बदलने की नौबत भी आ सकती
है. कुछ लोग जिनको यह पता है पर वाहन चला नहीं पाते हैं, दो तीन दिन में एक बार
उसके एंजिन को चालू करके दो पाँच मिनट तक
एक्सेलेरेशन देकर बंद कर देते हैं . उन्हें लगता है गाड़ी पाँच मिनट चलने का काम
कर गई. किंतु क्या यह सत्य है. चक्के हिले नहीं. चार्जिंग रेट इतनी ज्यादा हो गई
होगी कि बैटरी का सत्यानाश पीट गई होगी. ऐसे तो तीन - छः महीने में बैटरी बदलनी
पड़ेगी. आप शायद मानेंगे नहीं पर य़ेजदी जैसे मोटर साईकिल को 8 साल चलाकर – मूल (एक्साईड
कंपनी की) बैटरी की चलती हालत में, गारंटी कार्ड और बिल के साथ
मैंने बेची. यही हाल मेरे फिएट कार का था. सात साल बाद मूल बैटरी (एम ई सी कंपनी
की बैटरी) बदला. हाँ इस बीच तबादले पर मैंने बैटरी को खाली कर, धोकर सुखा कर ले
गया और नए जगह में फिर से उचित घनत्व का एसिड़ भरकर चार्ज किया. ऐसी कोई राय
पीसीआरए नहीं देता.
कहा जाता है
कि चौराहों में लाल बत्ती पर वाहन का एंजिन बंद कर लेना चाहिए. कितने समय खड़ी
रहने की परिस्थिति में .अलग अलग वाहन का ईंधन खपत अलग अलग होती है. स्टार्टिंग में
आईडल से ज्यादा खपत होती है. एंजिन तभी बंद किया जाना चाहिए जब तेल बचने की
संभावना हो. मैं चाहूंगा कि आईडल एंजिन की खपत उत्पादक द्वारा बताया जाना चाहिए.
आज भी भारत
में गाड़ियों की इकोनोमिक रफ्तार, से सड़कों की हालत का संमंजस्य नहीं है. अलग अलग
वाहनों के इकोनोमिक रप्तार अलग अलग हैं. लेकिन सड़कों पर सबको जल्दी होती है. सड़क
सही हो तो कार 90-100 किमी प्रतिघंटा से नीचे नहीं चलती जबकि इको स्पीड 60 किमी
प्रतिघंटा बताया जाता है. ऐसी विडंबनाओं को दूर करना होगा. हर तरह के वाहन की
इकोनोमिक रफ्तार के लिए सड़क और ईंधन उपलब्ध होना चाहिए
अब आईए घरेलू
इस्तेमाल पर – पहले गैस जलती है बाकी बाद में . जबकि गैस सबसे बाद में जलानी
चाहिए. जितना कम चूल्हा जलेगा उतनी ही बचत होगी. यानि सब कुछ तैयार कर लें, चूल्हे
के पास रख लें. फिर गैस जलाएं. पानी उबलने पर गैस की आँच कम कर लें यदि संभव हो तो
सिम पर कर लें. चाँवल के साथ आलू और अंडे उबाले जा सकते हैं. राजमा - लोबिया जैसे
कठोर पहले भिगोए जा सकते हैं.
पकने के बाद
ही, नमक डालें अन्यथा दाल नहीं गलेगी. कुकर के प्रयोग में कम ऊर्जा खपती है. हाँ
मधुमेह वालों के लिए माड़ निकालना पड़े तो मजबूरी है. जहाँ संभव हो कुकर का ही
प्रयोग करना चाहिए. मैं न खाना पकाने का शौकीन हूँ न ही खाने का, केवल खाना पूर्ति
होती है. जो इनके शौकीन हैं वे बेहतर बता पाएँगे. शायद कुछ और सुझाव भी दे सकेंगे.
एक बीमारी है –
खासकर सरकारी कार्यालयों की. सुबह चपरासी
आकर लाईट , फेन या एसी , कम्प्यूटर सब चालू कर देगा. साहब आए या न आए दिन भर चलते
रहेगे. यदि नहीं आए साहब, तो चपरासी-दफ्तरी शाम 5.30 बजे सब बंद कर जाएगा और यदि आ गए तो साहब जब
जाएँगे तब ही बंद करेंगे या फिर बाद में दफ्तरी बंद करेगा.
दिन भर साहब
कहीं भी रहें बिजली का कोई उपस्कर बंद नहीं किए जाएंगे, जैसे यह एक कानून हो. साहब
यदि कार्यालय से बाहर जा रहे हैं तो बिजली बंद कर दी जानी चाहिए आएँगे तो फिर चला देंगे
या लेंगे. सही तरीका तो यह होना चाहिए कि भले लाईट व पंखा पहले चालू कर दिया जाए
पर साहब के कार्यालय आने पर ही एसी चालू करना चाहिए और जाने के आधे - एक घंटे पहले
एसी बंद कर देना चाहिए. इससे बिजली तो कम खर्च होगी ही साथ ही साथ साहब की सेहत
भी ठीक रहेगी,. वरना ठंड – गरम के झटकों
में साहब का इम्यून सिस्टम खराब होता जाएगा और वे बीमार भी रहने लगेंगे. अच्छा हो
कार्यालय के हर दरवाजे पर द्वार- स्विच हो जिससे ,साहब की अनुपस्थिति में बिजली की
खपत बंद हो जाया करे. या कोई फोटो आईडेंटीफायर लगाया जाए जिससे बिजली के उपकरण
उनके उपस्थिति के साथ शुरु हों और जाते ही बंद हो जाएँ.
घर पर भी गलत
आदतों के कारण ऐसा होता है खासकर छोटे बच्चे अज्ञान वश ऐसा करते हैं और बड़े बच्चे
बिंदास होने की वजह से. घर के बड़े उन्हें सिखा सकते हैं. टी वी चल रहा है और दोस्त
सहेलियाँ आपस में बतिया रहे हैं. रेडियों के साथ तो ऐसा ही होता था. पर रेडियो सुनने
के लिए है और टी वी देखने के लिए — लोग समझते क्यों नहीं.
ऊर्जा के नए –
नॉन कन्वेंशनल – स्रोतों की खोज जारी है. कुछ सफलता भी मिली है पर यह संतुष्टि का
कारण नहीं है. आवश्यक मात्रा से हम अभी काफी दूर हैं. विभिन्न स्रोतों में –
परमाणु ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सौर्य ऊर्जा , जलप्रवाह ऊर्जा और लहर ऊर्जा विशेष हैं. इनके अलावा रसायनिक उद्योगों में बचे तरल (मातृद्रव)
को भी जलाकर ऊर्जा प्राप्त की जाती है. यह केवल रसायनिक उद्योगों तक ही सीमित रह
गई है. एअर कंडीशनर से उत्पन्न गरम हवा से भी बिजली बनाई जा रही है- हालांकि अभी
इसकी मात्रा बहुत कम है. बड़े एंजिनों के एक्जॉस्ट से भी बिजली उत्पादन शुरु किया
जा चुका है.
भारत में
परमाणु ऊर्जा संयंत्र खोले जा चुके हैं. इसमें सुरक्षा एक बहुत ही बड़ी सामस्या है,
जिसके लिए कई अतिरिक्त सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं. अभी तक सुरक्षा के साथ परमाणु
ऊर्जा त्पादन में हम सक्षम हैं. पवन ऊर्जा का औद्योगिक उत्पादन शुरु हो चुका है.
दिन प्रतिदिन नए संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं. हाँ पवन ऊर्जा संयंत्र काफी सही
चला और लोगों (औद्योगिक संस्थाओँ) ने इसे बहुत बड़े पैमाने पर अपनाया.
अब तक देश में
बहुत ही छोटे सौर्य ऊर्जा संयंत्र लगते थे. अक्सर ये संयंत्र सरकार के अनुदान के दोहन हेतु
होता था. उसके बाद संयंत्र की हालत का ध्यान कोई नहीं देता था. उनका रखरखाव भी
बहुत ही तकलीफ दायक था. चोरी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी. इसलिए सौर्य संयंत्र लगाने
के बावजूद साधारण जेनेरेटर से ही काम चला करता था.
अब बड़े सौर्य
ऊर्जा के संयंत्र (पार्क) स्थापित हो रहे हैं. औद्योगिक स्तर की तरफ अग्रसर हो रहे
हैं किंतु अभी पूरी तरह दोहन के लिए बहुत समय चाहिए. पवन एवं सौर्य ऊर्जा काफी
मात्रा में दोहन की जा सकती हैं. सरकार भी इस तरफ खास ध्यान दे रही है. लहरीय
ऊर्जा एवं जल प्रवाह ऊर्जा इस देश में अपने आप को साबित नहीं कर पाया. अभी इसके
लिए कुछ समय और लगेगा. असाधारण ऊर्जा के उत्पादन पर सरकार अच्छा खासा अनुदान देती
है.
नई तरह
की ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित का तात्पर्य हुआ कि हमने एक नई दिशा
खोजकर असाधारण तरीकों से उपलब्ध ऊर्जा में वृद्धि की है. हमें ज्यादा ऊर्जा मिल गई
है. इसीलिए असामान्य तरीकों से ऊर्झा उत्पन्न करने के लिए अनुदान दिया जा रहा है.
इससे संभावनाएँ बढ़ जाती हैं कि हमारी उपलब्ध ऊर्जा कुछ और समय के लिए पर्याप्त
होगी.
भारत में
कोयला और पेट्रोलियम तरल ( कच्चा और शोधित) ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं. इसलिए ऊर्जा
संरक्षण का सीधा तात्पर्य कोयला और पेट्रोलियनम तरल के बचाव से किया जा सकता है.
भारत में
बहुत बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम तरल आयात किया जाता है. देश में पाए जाने वाले
कच्चे पेट्रोलियम से हमारा काम नहीं चल पाता. भारत आज भी पेट्रोलियम का कच्चा तेल
एवं शोधित तेल दोंनों का बहुत आयात करता है. तेल के शोधित पदार्थों का निर्यात भी
होता है. सामंजस्य कुल मिलाकर उनके कीमतों पर किया जाता है. आयात में विदेशी
मुद्रा खर्च होती है जिससे देश की अर्थ व्यवस्था पर बुरा असर होता है. इससे पता
चलता है कि ऊर्जा की बचत का हम पर कहाँ तक असर है. ऊर्जा बचेगी तो पेट्रोलियम
पदार्थों जैसे संसाधनों की खपत घटेगी. उससे देश की विदेशी मुद्रा कम खर्चेगी, यानि
बचेगी. यह देश की संपन्नता को बढ़ाएगा. इसी तरह असाधारण ऊर्जा उत्पादन का भी यही
असर होगा. देश में कोयले की काफी मात्रा उपलब्ध है. हालांकि वह भी अक्ष्क्षुण्म
नहीं है. फिर भी स्वदेशी होने के कारण उसे खर्च कर पेट्रोलियम पदार्थों को बचाने
से अपेक्षाकृत ज्यादा लाभ होता है.
हाल ही
के वर्षों में ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिसियंसी बनी है. जो ऊर्जा खर्चने वाले उपकरणों को स्टार रेटिंग देती है. यह स्टार
ऊर्जा खर्चने वाले उपकरणों की गुणवत्ता बताती है. ज्यादा स्टार यानि अच्छी
गुणवत्ता या कहे ऊर्जा की कम खपत.
हमें
चाहिए कि ऊर्जा की बेहतर गुणवत्ता वाले उपस्करों का उपयोग करें. देश में ऊर्जा की
खपत कम करें. मतलब ऊर्जा के बचत के लिए गुणवत्ता पूर्ण उपस्करों का ही प्रयोग
करें. खपत कम होगी तो उपलब्ध ऊर्जा ज्यादा समय तक चलेगी. नए स्रोत भी इसी लिए
जरूरी हैं. इसी तरह हमअपने बच्चों, पोतो और पडपोतों को जीवन की सब सुविधाएं (या
उससे बेहतर) भरी जिंदगी दे सकते हैं.
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एम आर.अयंगर.
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