मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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मंगलवार, 25 जून 2013

मानसिकता

मानसिकता

सर्वोन्मुखी विकास अपना ध्येय होना चाहिए,
प्रकृति के संग मानव - नाव खेना चाहिए.

पंचभूतों से बना माटी का पुतला आदमी,
कृतज्ञ परमेश्वर का होना, इंसानियत है लाजमी.

आदमी संपूर्ण है क्या ?  एक के वर्चस्व से,
प्रकृति खोती है संबल, एक के भी ह्रास से,
लौटती अपने वजूद में, अपनी तरह के प्रयास से.

अंजाम इसका ही तो है – कभी - बरसात होती ही नहीं,
और कभी तो नदियों की सीमाएं होती ही नहीं.
बीमारियाँ इतनी बढ़ी कि माएँ सोती भी नहीं.



रूप प्रकृति क्रोध को, कहते हैं हम भूचाल - अकाल, 
सागर में आए बाढ , नहीं क्या काल यह विकराल ?

आज वादियाँ कराह रही हैं, जीवन को पनाह नहीं है.

प्रकृति कहर बरपा रही है, बादल फट – फट बरस रहे हैं.
गंगाजी अपना हक माँग रही हैं, कोप में महादेव को बहा रही हैं.
महा जल प्लावन हो रहा है, शिखर टूटकर बिखर रहे हैं,

लेकिन मानव है कि – आज भी प्रकृति से होड़ करता है,
प्रकृति संग चलना नहीं चाहता, उस पर विजय पाना चाहता है,
और जब प्रकृति बिफरती है तो य़े मानव बिखर जाता है.

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एम.आर.अयंगर.

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27/06/2013 को चर्चा मंच पर होगा
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

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  2. आपका कहना बिलकुल उचित है .. सम्पूर्ण विकाल होना चाहिए जिसमें हर कोई पूरक हो ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सटीक लिखा है.बेहतरीन भाव हैं

    जवाब देंहटाएं

Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.