मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

परिभाषा


परिभाषा

जिंदगी शतरंज की बाजी नहीं है,
जीत लो या हार लो.

है अंक इक यह,
ब्रम्होपन्यास का,
जिसके पात्र हैं हम सब,

परिवर्तन नित्य है,
पात्राभिनय जीवन है,
घटनाएं क्रमबद्ध हैं,

व्यक्ति विशेष,
मात्र नियति का माध्यम है,
वह केवल कर्त्ता का प्यादा है,
उसे केवल अपना अभिनय करना है,

विधि का विधान –
विदित, वर्णित है,
ब्रह्मा की लीक अमिट है,
नियति निश्चित है,

जब अंत होगा इस संसार का,
तब इस उपन्यास की समाप्ति होगी


तब तक अक्षरशः, शब्दशः, पृष्ठ दर पृष्ठ
यह उपन्यास इतिहास में तबदील होता रहेगा,
हमारा हमपात्र से होड़ किसलिए ?
किस बात परक्या पाने को ?

अपना-अपना अंश हमारे मंच समय का,
इस अभिनय के जटिल मंच पर,
कोई अपने आप,
नहीं है पूर्ण,
निर्भर हर इक दूजे पर


करना, तुमको नियति लिखी जो,
पाना, तुमको भाग लिखा जो,
फिर क्यों करते,
व्यर्थ-व्यर्थ की आशा

समझो –
जीवन की परिभाषा.

2 टिप्‍पणियां:

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