मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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शनिवार, 16 अप्रैल 2016

धर्माचार्य - क्या आप मेरे संशय दूर करेंगे ?

आदि शंकराचार्य के बाद, उनका नाम, उनके ही बनाए चार पीठों के पीठाधीशों के साथ ही जुड़ता है. आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित होने के कारण, ये पीठ और पीठासीन व्यक्ति आदर पाते हैं. शंकराचार्य स्वामी  स्वरूपानंद जी, आज आप उन चारों पीठों में एक द्वारका पीठ के मठाधीश हैं. आदि शंकराचार्य के द्वारकापीठ पर आप पीठासीन हैं. आप धर्माचार्य हैं. धर्म संस्थापन आपका ध्येय है. इसके साथ ही धर्माँधता को दूर करना भी आपका एक कर्तव्य है.  मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि आपके समक्ष मैं किसी योग्य नहीं समझा जा सकता. आपके कुछ वक्तव्य मेरे समझ से परे हैं और मुझे लगता है कि ये वक्तव्य आपके धर्माचार्य के मर्यादा का उल्लंघन करते हैं. मैं जो जानता हूँ वह कह रहा हूँ. कृपया गलत हो तो सुधारें.

अब फिर आप वक्तव्य दे रहे हैं, पहले भी आपने वक्तव्य दिए हैं कि साईं की पूजा करना अपराध है. साईं एक संत हैं इसलिए उनकी पूजा अनुचित है. मुझे यह समझ में नहीं आ रहा है कि कोई मेरी पूजा करता है या मैं किसी की पूजा करता हूँ तो इसमें आपको आपत्ति क्यों ? इसके पहले के वक्तव्य के समय आपके चहेतों ने, कट्टर हिंदूवादियों से मिलकर साईं के मंदिरों को भी नुकसान पहुँचाया था. यह कौन सा धर्म पथ है ? कौन सी धर्म संस्थापना है ? यह धर्माचार्य की किस जिम्मेदारीके तहत संगत है ?

आज आप कह रहे हैं कि साई की पूजा जैसी विधियों के कारण ही अकाल व सूखा पड़ रहा है. पहले यह पता किया जाए कि साईं पूजा पहले से है या अकाल पहले पड़ गया था. यदि आपको इतनी ही आपत्ति थी, तो जीते जी सत्यसाईं को ललकारा होता. अब शिरड़ी साईं की पूजा पर क्यों आपत्ति जता रहे हैं. तो 
तब आपकी तंद्रा भंग क्यों नहीं हुई ?

दूसरी बात आपने यह भी कहा कि शनि सिंगनापुर मंदिर के गर्भगृह में स्त्रियों के प्रवेश के कारण व्यभिचार बढेगा, रेप बढ़ेंगे. क्या ऐसा वक्तव्य आपके उस पीठ की मर्यादा के आधीन आता है. फिर आप ऐसा क्यों कर रहे हैं ? आज तक क्या रेप नहीं होते रहे, क्या पहले नहीं होते थे ? फिर आज यह विचार क्यों आया ? अभी तो स्त्रियों का जमाना है. हो सकता है धीरे धीरे सारे मंदिर – चाहे वह तिरुमळै हो या कोल्हापुर के मंदिर हों या फिर शबरीमळै... हर मंदिर का प्रबंधन एक के बाद एक गर्भगृह में नारियों को अनुमति देने को बाध्य होगा – आज नहीं तो कल. नारी की क्षमता को न ललकारिए न ही ठुकराईए.

स्वामीजी अब तो कम से कम अपना पुरुष होने का दंभ त्यागिए और नारी की प्रधानता को भी बा-इज्जत स्वीकारिए. जमाना बहुत बदल चुका है. जमाने के साथ भी चलिए. स्वामी जी, नारी द्वारा एक मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश मात्र से यदि आप इतने विचलित हो रहे हैं, तो उस दिन क्या होगा जब प्रगतिशील नारी आप के चार पीठों में से एक या एकाधिक पर आसीन होगी और प्रगतिशील नारी के लिए वह दिन दूर नहीं है. पुरुष होने का दंभ रखने पर आपको उस दिन पलायन करने के अलावा की रास्ता नहीं बचेगा.

आप धर्म गुरु हैं, विज्ञ हैं. अपने स्थान, स्वाभिमान व मर्यादाओं को बनाए रखें. इसी में सब की भलाई है. न कि पीठ की मर्यादा का दमन करें. आपको क्यों फर्क पड़ना चाहिए कि कौन सी सरकार क्या कर रही है. चाहे वह काँग्रेस हो या भाजपा हो ? भीष्म पितामह की तरह आप राज्य से नहीं बँधे हैं. आप तो धर्म के साथ बँधे हुए हैं. यही धर्म भारत को कभी विश्व गुरु का दर्जा दिलाता था. आप अपने ज्ञान व प्रतिष्ठा से भारत को फिर से धर्मगुरु का स्थान दिलाने का प्रयत्न करें. यही उचित होगा न कि दैनंदिन की कट्टर हिंदू पंथी राजनीति का हिस्सा बनें.

मैं सर्वथा समझता हूँ कि आपके सामने मेरी क्षमता या योग्यता कुछ भी नहीं है, तुच्छ है, किंतु मेरे मन के उद्वेलित भाव मुझे आपसे यह कहने को मजबूर कर रहे हैं.  कृपया इन पर शाँतिपूर्वक विचारें.
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एम आर अयंगर

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