मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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गुरुवार, 16 जुलाई 2015

ना करो..

ना करो..

कनखियों से देख कर मुस्कुराया ना करो,
आप, अपनी अदाओं से बहलाया ना करो,
हुस्न की तारीफ में बहक न जाएं कहीं,
अपना बनाने, इस कदर फुसलाया ना करो.



नजरों ने न जाने कितने नजारे देखे,
नजर-अंदाज सबको करते रहे,
आप पर नजर लौटने क्यों लगी है,
खुद, खुदी से सवाल करते रहे,



न देखा किसी ने कभी इस तरह,
ना ही देखा किसी को कहीं (कभी) इस तरह,
मौसम-ए-बरसात में न की बारिश की बात,
जेठ में न बरसो, यहाँ इस तरह.

प्रेम से प्यार से मन तो तर था मगर,
आपके प्यार का जिक्र कुछ और है,
प्यार करने की अपनी फितरत अलग,
आपके प्यार का ठौर कुछ और है,
.................................................................
अयंगर.
(चित्र गूगल से साभार)
प्यार, अदा, जेठ, बारिश, बरसात
  

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