मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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मंगलवार, 26 मई 2015

तुम्हारी नजर

तुम्हारी नजर

तुम्हें न जानें,
कितनी अदाओँ में देखा
लेकिन आज तक समझ नहीं पाया

जब मेरे सामने खड़ी  
नजरें झुकाए रहती हो,
तो लगता है मुझमें पूर्ण समर्पित हो,

लेकिन जब पलकें उटाए खड़ी हो,
तो लगता हैं कह रही हो
मेरी तरफ घूर कर क्या देखते हो,
आँखे निकाल कर रख दूंगी,

बहुत आनंद आता है ,
जब तुम अधखुली पलकों के कोरों से,
निहारती रहती हो ,
मंद मंद मुस्कान होठों पर लिए,

ऐसा लगता है कि,
तुम मुझमें समर्पण को तत्पर हो रही हो,
लेकिन चिंतित हो,
मुझसे अपनी सुरक्षा के प्रति,

इसलिए झुकी नजरों से 
समर्पण का भाव प्रस्तुत करती तुम,
अपनी सुरक्षा को निश्चित करती रहती हो,
कनखियों के झरोखों से झाँक कर,

मुझे नारी का यही रूप और
यही मानसिकता बहुत भाती है,

स्वयं अपनी रक्षा के प्रति
हमेशा प्रतिवद्ध, आश्वस्त
पर दिल में समर्पण का भाव भी साथ लिए हुए.
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एम.आर. अयंगर.

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