रविवार, 26 मई 2013

चौदहवीं का चाँद


चौदहवीं का चाँद


सन् 60 में मेरे घर पहली बार रेडियो बजा,

पहला गाना था ..

चौदहवीं का चाँद हो... या आफताब हो...

गीत लाजवाब था,

मन में तमन्ना जागी,

और चले एक चेहरा खोजने,

जिससे कहा जाए..

.. चौदहवीं का चाँद हो...


लेकिन बदकिस्मती साथ लग गई,

जवानी की देहरी पर आने के पहले ही..

नील आर्मस्ट्राँग ने चाँद पर अपने कदम धर दिए.


फिर न जाने कितने चेहरे मिले,

मन हुआ कहा जाए..

चौदहवीं का चाँद हो..

लेकिन हर वक्त एक टीस उठती थी मन में,

कि चाँद पर किसी ने कदम धर दिए हैं,

और तमन्ना अधूरी रह जाती,


ऐसे ही ना नुकुर में जवानी के पार हो गए,

पहले अधेड़, फिर बुढ़ापे की तरफ नजर कर गए,

किसी को तो चौदहवीं का चाँद नहीं कह पाए,


लेकिन कुँआरे ही बुढ़ापे का चाँद पा गए.

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एम आर अयंगर.

2 टिप्‍पणियां:

  1. शुभम
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (27-05-2013) के :चर्चा मंच 1257: पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ |

    जवाब देंहटाएं

  2. सरिता जी,

    चर्चा मंच में शामिल करने की सूचना के लिए आभार एवं धन्यवाद.

    अयंगर.

    जवाब देंहटाएं

Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.