रविवार, 27 जनवरी 2019

ऐसा भी होता है.

*ऐसा भी होता है.*

सब लड़कों जैसे मुझे भी
जवानी में पीने का
शौक हो गया था.
एक सिटिंग में एक बोतल
कम पड़ती थी.
रोज कैरम खेलते और
हारने वाला पिलाता.

पर कभी पब्लिक में नहीं पी, सिवाय होली के.

एक होली में ज्यादा पीली.
राव से कहा, यार घर छोड़ दे.

गलबहियाँ डाले झूमते हुए
घर आकर सो गया.

दूसरी शाम नींद खुली.
राव से मिला तो बताया कि गुलियानी भाभी ने पूछा --
आप ज्यादा पी गए थे क्या..?  अयंगर साहब आपको घर छोड़ने गए थे... ।
राव साहब पीते कम
और दिखाते ज्यादा थे...
मस्ती में.
सबको लगता था,
वो बहुत पीते हैं।।

और हम थे ..
वो क्या कहते हैं..।
गुड बॉय...
बाद में भाभी जी
मुझसे बोली, भाईहासब,
अपने दोस्त
राव को समझाईए,
इतनी क्यों पीते हैं,
कम पिएँ,
हद में रहा करें,

सबने देखा
आप उनको
घर छोड़ने गए थे.
बदनामी होती है ना..

मेरे लाख कोशिशों पर भी
भाभी नहीं मानीं,
कि मैं राव को नहीं,
पर राव मुझे घर
छोड़ने गए थे.।।

समाज में अपना बिंब कैसे बनाना है,
यह स्वयं पर निर्भर करता है.
.।..।