बुधवार, 31 मई 2017

निर्णय ( भाग 2)


निर्णय (भाग 2)
                                                  (भाग 1 से आगे)

रजत भी समझ नहीं पा रहा था कि कैसे अपनी भावना संजना तक पहुँचाए। डर भी था कि संजना उसकी बात से नाराज हो गई तो वह उसे हमेशा के लिए ही खो देगा। वह अजब पशोपेश में पड़ा हुआ था।

कॉलेज के वार्षिकोत्सव में रंजना ने कई कार्यक्रमों में भाग लिया था । एक नाटिका में रजत भी साथ था । प्रेक्टिस के दौरान एक दूसरे को समझने के जानने के मौके   मिले । संजना अक्सर रजत की पसंद की चीज़ें टिफिन में लाती और उसे खिलाती। अपने प्रेम की अभिव्यक्ति का एक यही तरीका मालूम था उसे।

कालेज के पिछले हिस्से में बड़ा सा हरा भरा उपवन और एक मंदिर था। वहाँ कई सघन वृक्ष थे। उनमें से एक गुलमोहर का वृक्ष संजना को बड़ा प्रिय था। वह और रजत कभी कभी गुलमोहर के नीचे बैठते थे तब मजाक में रजत कहता, -

'चलो, ये गुलमोहर तुम्हारे नाम कर दूँ।

इस पर तुम्हारा नाम लिख दूँ?'

जब वह गुलमोहर पर नाम लिखने के लिए तैयार होता तो संजना रोक देती। 

कहती, " मुझे फूलों से ढँका देखना है इस गुलमोहर को, परंतु फूल तो आएँगे मई में और तब तो हम कॉलेज छोड़कर जा चुके होंगे। अप्रेल में परीक्षाएँ हो जाएँगी, तब कौन आएगा यहाँ ?"

रजत - "मैं आऊँगा। तुम भी आना, उन फूलों को अपने आँचल में भर लेना...ढ़ेर सारे !"

इस तरह प्रेम की अदृश्य निर्मल सरिता उन दो दिलों में बहती रहती। 
संजना मध्यमवर्गीय परिवार से थी और बारहवीं के बाद से ही टयूशन्स पढ़ा कर स्वयं पढ़ती थी।

रजत ने उसके बारे में तो सब पूछ लिया था लेकिन अपने बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताया था, सिर्फ इतना कि उसके माता पिता गाँव में रहते हैं और वह यहाँ चाचा चाची के पास रहकर पढ़ता है। 
न ही संजना ने उससे कुछ पूछा.

गुलमोहर उनके अनकहे प्रेम का मूक साक्षी हो गया था। 

संजना को रजत का आत्मसंयम व शालीन व्यवहार बहुत प्रभावित करता था। वह अपने गीतों और कविताओं को संजना को सुनाता। कुछ गीतों में छिपे संदेश को समझकर संजना की नजरें झुक जाती।

आखिर वार्षिकोत्सव का दिन आ गया। सारे कार्यक्रम सफल रहे। 

संजना ने गायन स्पर्धा में अपना प्रिय गीत 

'हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू' गाया. 

तो रजत को महसूस हुआ कि यह गीत सिर्फ उसी के लिए गाया गया है। कार्यक्रम पूरा होते ही उसने संजना को ढूँढ़ा और एक मुड़ा हुआ कागज उसके हाथ में देकर कहा, "इसे पढ़ लेना बाद में।"

संजना कुछ कह पाती तब तक रजत को ढूँढ़ते हुए दीपक वहाँ पहुँच गया। बात अधूरी रह गई।

संजना ने वहीं कागज खोल कर पढ़ा। कुछ लिखा था....

लिखा था -'संजना, तुम मेरी प्रेरणा हो।'

उन शब्दों ने संजना से वह कह दिया जो अन्य किसी भी तरह व्यक्त कर पाना संभव ही नहीं था। रात भर में संजना ने उन पाँच शब्दों को पाँच सौ बार पढ़ा होगा। लेकिन प्यार के उस उपहार को पाकर खुश होने के साथ साथ उसकी आँखें बरस भी रही थीं। मन घबरा सा रहा था। पिताजी के क्रोध की कल्पना थी उसे !

अगले दो दिन वह रजत से अकेले मिलने से बचती रही। जवाब माँगेगा तो क्या कहेगी ? इधर घर में उसकी सगाई की बात चल रही थी। अगले सप्ताह लड़के के घरवाले उसे देखने आने वाले थे। आखिर उसने सोच लिया कि वह रजत से खुलकर बात करेगी। कब तक छुपाएगी अपनी भावनाओं को? अगले महीने प्रिलीमिनरी परीक्षाएँ शुरू हो जाएँगी। 

इस तरह मन भटकता रहेगा तो पढ़ाई कैसे होगी ?

अगले दिन लेक्चर्स के बाद उसने स्वयं जाकर रजत से कहा कि उसे कुछ कहना है।
दोनों अपनी पसंदीदा जगह गुलमोहर के नीचे जा बैठे। बात रजत ने ही शुरू की –

"संजना, तुम मुझे पसंद करती हो?"

संजना ने एक बार उसकी ओर देखकर पलकें झुका लीं।

रजत - "मैं तुम्हारी खामोशी को हाँ समझता हूँ। तुमने कभी मेरे बारे में जानना नहीं चाहा। 
संजना, मैं तुम्हें धोखे में नहीं रखना चाहता। 

हमारे यहाँ शादियाँ बहुत कम उम्र में हो जाती हैं। 
मैं सोलह वर्ष का था, तभी पिताजी के एक मित्र की बेटी से मेरी शादी कर दी गई। 
मैं विरोध भी नहीं कर पाया। 
अभी गौना बाकी है। 
मेरी पत्नी जिसे मैंने कभी पत्नी नहीं माना, वह अपने मायके में है। 
मैं उस लड़की को जानता नहीं, प्यार नहीं करता
कैसे निबाहूँगा उसके साथ
संजना, तुम मेरी बात समझ रही हो ना ?"

संजना अब तक वैचारिक तूफानों में घिर चुकी थी.
इतना बड़ी बाचत अब तक छुपाए रखी.
मैं और मेरा प्यार किसी को अपने अधिकार से वंचित कर रहा है.
मैं एक स्त्री होकर एक स्त्रीका हक कैसे मार सकताी हूँ
मेरा प्यार साझा भी तो नहीं किय़ा जा सकता, उस यौवना से...

अनायास इन वैचारिक तूफानों से गिरे संजना ने एक कठोर जीवन निर्णय ले लिया.

उधर रजत कह ही रहा था -

"संजना, प्लीज मुझे गलत मत समझो। 
मैं उससे तलाक ले लूँगा। 
तुम मेरी प्रेरणा हो
मेरी कविता, मेरे गीत सब तुमसे हैं। 
तुम मेरा साथ दोगी ना ? कुछ तो बोलो..."

संजना कई क्षणों तक सुन्न सी बैठी रह गई। 
फिर उसने धीरे से रजत के दोनों हाथ पकड़कर खुद से दूर कर दिए। 
बिना एक भी शब्द बोले उसने अपना पर्स उठाया और शिथिल कदमों से वहाँ से चली गई। 

रजत में इस खामोश तूफान का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। 
वह स्तब्ध सा वहीं बैठा रहा।

उसके बाद संजना एक सप्ताह तक कॉलेज नहीं आई। 
दिशा के हाथों उसने छुट्टी का प्रार्थना पत्र भेज दिया था। 
सबको यही पता था कि वह कजिन की शादी में जयपुर गई है।

एक सप्ताह बाद संजना कॉलेज आई तो उसके दोनों हाथों में गहरी लाल मेंहदी रची हुई थी और अनामिका में एक खूबसूरत सी सोने की अँगूठी थी। उसने हल्के पीले रंग की साड़ी पहन रखी थी। लंबे घने बालों की ढीली चोटी लहरा रही थी।  

"हाय ! कहाँ गुम हो गई थी इतने दिन?"

संजना को देखते ही सहेलियों ने उसे घेर लिया। तब तक मेंहदी और सगाई की अँगूठी पर उनकी नजर पड़ चुकी थी। 

"एन्गेजमेंट ? सच्ची ? इतनी बड़ी खुशखबरी छुपाई हमसे !
सोचा होगा सगाई में सारी क्लास को बुलाना पड़ेगा !
चलो, कोई बात नहीं, शादी में सारी कसर निकालेंगे।
बधाई हो,संजना !"

बधाइयों का सिलसिला शुरू हो गया था, सबकी नजर बचाकर संजना ने आँखों की कोरों पर रुकी बूँदों को पोंछ लिया। 

तब तक विस्मय विमूढ़ सा रजत खुद को सँभालते हुए आगे आया और कहा
 "बधाई हो संजना !"

इसके बाद एक क्षण भी वहाँ रुकना उसे भारी हो रहा था। वह थके थके कदमों से क्लास से बाहर चला गया।

आज पच्चीस वर्ष गुजर गए । संजना अपने पति और दो बेटों के साथ संतुष्ट और खुश है। परीक्षा के बाद उसने कभी रजत को नहीं देखा, ना ही उसके बारे में जानने की कोशिश की। 

पर हर साल जब गुलमोहर खिलता है या कोई फूलों से लदा गुलमोहर का पेड़ दिखता है तो  संजना को वे दिन जरूर याद आते हैं. 

अपने निर्णय पर वह बहुत खुश है, उसे कोई पछतावा नहीं है 

संजना को आज भी लगता है कि उसका निर्णय समय पर और सही था.
......                                                              (संपूर्ण)