शुक्रवार, 7 जून 2013

मेरे अपने

मेरे अपने

हाथ लिए राखी, लाँघ चली तुम,
जिस लाश को,
जिस कलाई को थामने,
थी भाग रही तुम,
वह मेरी लाश थी, और
वो कलाई मेरी.

राखी के धागों से बाँध दिया श्वास,
जान ही मैं दे सका, राखी की सौगात,

यह भी कोई तपस्या?
कि घुट घुट मरो,
अपनी ही जिंदगी, जीते हुए डरो.

भेद बिना, ऐसा तो होता नहीं,
बिना खुशी-गम के कोई रोता नहीं.

कौन सा ये भेद क्यों छुपाती हो तुम?
अपनों को ऐसे क्यों रुलाती हो तुम?

खुश रहो तुम, सभी हैं चाहते यहाँ,
तेरे कदमों में रख दें हम सारा जहाँ,

पर मजबूर हैं – तुमने ही नकारा हमें,
फिर किस उम्मीद से हम पुकारा करें ?

मन को हल्का करो, आँखें रोशन करो,
रोशनी में जिओ, रोशनी में रहो,

अंधेरों में जीना तुम छोड़ दो,
अंधेरों में रहना तुम छोड़ दो.

 भेद दिल में लिए क्यों घुटी जा रही हो?
 ऐसी दिल की घुटन को तुम तोड़ दो,

काश !!! अपनों पर तुम तुछ भरोसा करो, या
 उन्हें अपना कहना ही तुम छोड़ दो.



एम.आर.अयंगर.

सोमवार, 3 जून 2013

एक पौधा

  एक पौधा.



मधुवन मनमोहक है,

चितवन रमणीय है,

उपवन अति सुंदर है

और

जीवन से ही

प्रदुर्भाव है इन सबका.

फिर ........


जब जीवन के उपवन से,

मधुवन के चितवन तक,

हर जगह

वन ही की विशिष्टता है.


तो क्यों न हम वन लगाएँ ?

आईए शुरुआत करें,

और लगाएँ....

"एक पौधा".
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एम.आर.अयंगर.