सोमवार, 1 अप्रैल 2013

लिखना है....


लिखना है...

शब्दों को एकत्र कर, बाँध दिया एक साथ,
 जिसने बचने का किया ,थोड़ा सा भी प्रयास,
समझाया उनसे कहा, मत कर यह बदमाश,
फिर भी जो तनते रहे, जबरन उनके साथ.

संग सभी को बाँधकर, कहा शब्द विन्यास,
कविता फिर भी बन गई, भले न कोई खास.
डाल दिया है ब्लॉग पर, सबके पढ़ने को,
जिसको जैसी भी लगे, टिप्पणी करने को.

सभी दोस्तों ने कहा- कितनी अच्छी है,
मेरा मन था कह रहा- अब तक कच्ची है.

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कुछ भी लिखने के लिए,
नहीं न लिखना है,
भावनाओं से सराबोर,
मन को उद्वेलित करने वाली,
चंचल अभिव्यक्तियों को,
समावेश कर, 
रचना लिखना है.

जिसमें-
एक दिशा हो, एक प्रवाह हो,
एक समस्या या एक समाधान हो,
एक संदेश हो,और संभवतः
शब्द विन्यास हो...
कुछ ऐसा लिखना है.
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एम.आर.अयंगर.