रविवार, 19 जून 2011

MRITYUDAND

मृत्युदंड

                     जहाँ पूजनीय है नारी,
                     वहीं देवता बसते हैं,
                     किंतु राम से देव..
                     दैव हा!!
                     अग्नि परीक्षा लेकर भी,
                     सीताजी को तजते हैं.

                     कहाँ दोष सीता का कहिए,
                     उसका हुआ हरण जो था?
                     रावण को भड़काने वाला,
                     भगिनी कटा कर्ण तो था.

                     यदि रावण अपने पक्ष में प्रस्तुत करता,
                     सीताजी के अग्नि परीक्षा की रिपोर्ट,
                     तो क्या मृत्यु दंड दे सकता था उसे...
                     यह सुप्रीम कोर्ट ???

6 टिप्‍पणियां:

  1. सही सवाल उठाया है। नारी को तो न्याय से वंचित रहना उसका भाग्य है शायद ये सुप्रीम कोर्ट भी न्याय नही कर पाता।

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  2. महोदया,

    मेरा प्रश्न तो तर्क संगत है. यदि अग्नि परीक्षा न हुई होती तो और बात थी लेकिन अग्निपरीक्षा को बाद - निर्णय को स्वीकारना तो धर्मसंगत भी है. सीताजी न्याय से वंचित रहीं , इसका अर्थ यह तो कदापि नहीं कि रावण को भी न्याय से वंचित कर दिया जाए. खैर यह तो एक तार्किक व्यंग था -- पुराण तो कुछ और ही कहते हैं.

    ब्वॉग पर पधारने एवं टिप्पणी का कष्ट करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.. फिर पधारें आपका स्वागत है.


    एम.आर. अयंगर.
    09907996560.

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  3. आज भी ऐसे बहुत से हादसे मिल जाते है"

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  4. देवता जी,

    मेरे ब्लॉग पर पधारने एवं अपनी अभिव्यक्ति देने के लिए आपका धन्यवाद.

    मेरी रचना तो तार्किक है... सोच अपनी अपनी है.

    नारी को नीचा दिखाए जाने का यदि गम है तो आज जो नर को नाचा दिखा रहे हैं उसका मलाल भी होना चाहिए - ऐसा मेरा माननाहै.

    बाकी अपनी अपनी राय...

    सधन्यवाद एवं साभार,

    श्रेयोभिलाषी,

    एम.आर.अयंगर,
    09907996560.

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Thanks for your comment. I will soon read and respond. Kindly bear with me.