मेरा आठवाँ प्रकाशन / MY Seventh PUBLICATIONS

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सोमवार, 7 नवंबर 2016

वे दिन

ववूबबबबब,
बगहजदज 
जदगहबीबहगट
वे दिन

बहुत याद आते हैं वे दिन,
नदिया के तीर
घाट की सीढ़ियों पर बैठे,
पांव से नीर को छलछलाते हुए,
हाथ, तुम्हारे बालों से खेलते हुए,
मीठी - मीठी तुकी बेतुकी बातें करते हुए,

दिन दोपहर और शामें बिताना,
वो दिन बहुत याद आते हैं.

तुम्हारी गर्दन पर मेरी उँगलियों का स्पर्श
तुम्हारी गालों पर ,
कभी मेरे हाथों का ,
तो कभी मेरे गालों का स्पर्श,
तुम्हारी लटें मेरे चेहरे पर, और
तुम्हारी उँगलियाँ मेरे बालों में खेलती,
घड़ियों के सुईयों की रफ्तार,
शताब्दि एक्सप्रेस को मात देती हुई,

रोकने की जी तोड़ कोशिशें,
नाकाम ही रहीं.

पता ही नहीं चला
कब बीत गए वो दिन,
ऐसे ही चलते चलते,
एक दिन हम पति-पत्नी बन गए,
तुम प्रियतमा से पत्नी बन गयी
और मैं बन गया पति,
जीवन के हमारे पात्र बदल गए,
हमारे जीवन के माय़ने बदल गए, ,
अब तुम और मैं खास नहीं रहे,
अब हमारे बच्चे ही खास हैं
वही हमारे भावी जीवन के आस हैं.







घाटगहमाचपूबबबबबबबसससवपर

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